तुम्हारे बाल झड़ते हैं...

Author: दिलीप /

रात ठंड थी थोड़ी...
कल एक मौसम बाद वो स्वेटर निकाला...
स्वेटर पर तीन बाल चिपके थे तुम्हारे...
उन्हे ही हाथ मे लेकर सहलाता रहा...
फिर रात सर्द न रही...
पिछली किसी याद की गर्माहट के साथ...
यूँ लगा कि तुम्हारे साथ सोया...
और तुम यूँही फ़िक्र करती थी कि...
तुम्हारे बाल झड़ते हैं...

16 टिप्पणियाँ:

vidya ने कहा…

वाह...
बहुत बहुत बहुत बढ़िया..
बेहद पसंद आई आपकी ये रचना.
too good!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) बहुत खूब

Prakash Jain ने कहा…

Wah...kya baat hai....

पद्म सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर...बहुत बहुत सुंदर

बेनामी ने कहा…

kya baat hai
behatrin

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बेहतरीन भाव।

kshama ने कहा…

Nazakat bharee rachana!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

कहाँ छिपे रहे तुम इतने दिन... मैंने तो अपने ब्लॉग रोल से भी डिलीट कर दिया था तुम्हें.. लौटे तो खबर भी नहीं!!
नज़्म बेजोड है.. और सर्दियों में भी गर्मी का एहसास देती है, रिश्तों की गर्मी का..!! जीते रहो!!

हरीश जयपाल माली ने कहा…

vah,,,mutthi bhar shabdon se baat pte ki kar di...

दिलीप ने कहा…

Salil ji zinda to hain naukri chhod ke MBA karne ki sanak chadhi to waqt kam hi mil pa raha hai..ye sanak bhi na sukoon cheen leti hai...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

dekho to ismein kitni garmi hai ... bahut badhiyaa

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत खूब कहा आपने ।

Shekhar Suman ने कहा…

are mere naye blog ke roll par aapka blog daala hai abhi abhi... jaane kahan kho gaye the aap...

ZEAL ने कहा…

very romantic creation...

दिलीप ने कहा…

shukriya doston...

Pallavi saxena ने कहा…

वाह क्या बात है, बहुत खूब...

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