बड़ा बेदम निकलता है...

Author: दिलीप /

हँसी होंठों पे रख, हर रोज़ कोई ग़म निगलता है...
मगर जब लफ्ज़ निकले तो ज़रा सा नम निकलता है...

वो मुफ़लिस खोलता है रोटियों की चाह मे डिब्बे...
बहुत मायूस होता है वहाँ जब बम निकलता है....

वो अक्सर तोलता है ख्वाब और सिक्के तराजू में...
खुशी पाने में इक सिक्का हमेशा कम निकलता है....

जबां की जेब में शीशी जहर की कब तलक होगी...
तेरा हर लफ्ज़ घुलने से हवा का दम निकलता है....

भला क्यूँ बह रहे पानी का भी, मज़हब बना डाला...
कहीं गंगा निकलती है, कहीं ज़मज़म निकलता है...

गिलहरी मार दी, दंगाइयों ने, फेंक कर पत्थर...
लहू अब पेड़ की हर शाख से हरदम निकलता है...

मेरा हर शेर लहरों में तो चिंगारी सा दिखता था...
मगर साहिल से टकराकर बड़ा बेदम निकलता है...

23 टिप्पणियाँ:

Prakash Jain ने कहा…

Dilip Sir,
Aapki lekhni se hardam naya rang nikalta hai,
Choo leta hai bheetar tak, jab vyang nikalta hai

Behtareen

इमरान अंसारी ने कहा…

सुभनल्लह………दूसरे शेर के लिए खास दाद |

Neetu Singhal ने कहा…

नौलासी अल्फाज वो जरा कम बोलते हैं..,
अदब से बोलिए तो मुँह से बम बोलते हैं.….

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब सुंदर लाजबाब (गजल),,,

RECENT POST: तेरी याद आ गई ...

***Punam*** ने कहा…

बहुत खूब....
हर शेर अपने आप में सवा सेर है.....

मेरा हर शेर लहरों में तो चिंगारी सा दिखता था...
मगर साहिल से टकराकर बड़ा बेदम निकलता है...!

और सारा दम तो इसी शेर में आ गया है....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बहुत खूब..

Asha Lata Saxena ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर शब्द संयोजन |उत्तम रचना |
आशा

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बहुत खूब

Unknown ने कहा…

वो मुफ़लिस खोलता है रोटियों की चाह मे डिब्बे...
बहुत मायूस होता है वहाँ जब बम निकलता है.

amazing u write....

Rajput ने कहा…

दिलीप जी,
में अक्सर आपके ब्लॉग पे आकर कवितायें पढता हूँ। और सच मानिए एक बार ब्लॉग में enter करने के बाद घंटे भर तक वहीं जमा रहता हूँ। आपकी कविताओं में बहुत मिठास सी महसूस होती है। में किसी एक नज्म या कविता की तारीफ नहीं कर सकता क्योंकि नंबर वन या टू की श्रेणी मे रखना टेढ़ी खीर है :) बहुत खूब

tanahi.vivek ने कहा…

शब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
अल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....

बहुत खूब ....

बहुत सालों से ऐसा नहीं पढ़ा। ।

बेनामी ने कहा…

bahut sunder

anjana ने कहा…

जबरदस्त !!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



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वो मुफ़लिस खोलता है रोटियों की चाह मे डिब्बे...
बहुत मायूस होता है वहाँ जब बम निकलता है....

जबां की जेब में शीशी जहर की कब तलक होगी...
तेरा हर लफ्ज़ घुलने से हवा का दम निकलता है....

भला क्यूँ बह रहे पानी का भी, मज़हब बना डाला...
कहीं गंगा निकलती है, कहीं ज़मज़म निकलता है...

वाह ! वाऽह…! वाऽऽह…!
हर शे'र नायाब हीरा है भाई !
क्या कहने !
बहुत सुंदर !!

...लेकिन भाई दिलीप जी
कहां हैं आप आजकल ?
आशा है सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं...
ईश्वर की कृपा बनी रहे !

कुछ नया लिखो/ लगाओ तो मेल अवश्य भेजना ...

मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार


जीवन और जगत ने कहा…

‘कहीं गंगा निकलती है, कहीं जमजम निकलता है’ बेहतरीन अंदाज-ए-बयां।

Test ने कहा…

प्रिय दोस्त मझे यह Article बहुत अच्छा लगा। आज बहुत से लोग कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त है और वे ज्ञान के अभाव में अपने बहुत सारे धन को बरबाद कर देते हैं। उन लोगों को यदि स्वास्थ्य की जानकारियां ठीक प्रकार से मिल जाए तो वे लोग बरवाद होने से बच जायेंगे तथा स्वास्थ भी रहेंगे। मैं ऐसे लोगों को स्वास्थ्य की जानकारियां फ्री में www.Jkhealthworld.com के माध्यम से प्रदान करती हूं। मैं एक Social Worker हूं और जनकल्याण की भावना से यह कार्य कर रही हूं। आप मेरे इस कार्य में मदद करें ताकि अधिक से अधिक लोगों तक ये जानकारियां आसानी से पहुच सकें और वे अपने इलाज स्वयं कर सकें। यदि आपको मेरा यह सुझाव पसंद आया तो इस लिंक को अपने Blog या Website पर जगह दें। धन्यवाद!
Health Care in Hindi

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

बेनामी ने कहा…

अच्छा लगा आपका ब्लॉग। एक एक पंक्ति एक वेदना लिए हुए सीधी दिल से निकलती है।

deepa joshi ने कहा…

very nice

Anuradha chauhan ने कहा…

वाह बेहतरीन प्रस्तुति

Only my fitness ने कहा…

bahut achhi post likhi hai aapne bhai
only my fitness

Pallavi saxena ने कहा…

आपका शेर और बेदम ऐसा तो हो ही नहीं सकता है, हर बार की तरह शानदार पोस्ट।

deepak ने कहा…

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