कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जो सौदेबाज़ नहीं होते...

Author: दिलीप /

जो इश्क़, खुदाई होती, ये गीत साज़ नहीं होते...
जो कान्हा फेरे उंगली, मुरली में राग नहीं होते,

दो जिस्म मिले, इक आँच उठी, गर इश्क़ इसी को कहते हैं...
तो सूर, बिहारी, मीरा क्या, राधे और श्याम नहीं होते...

जो सूखे चेहरे देखे थे, उन पर मुस्काने छिड़काते...
जो तब गीला दिल कर लेते, यूँ सूखे आज नहीं होते...

पत्थर की चोटों से जिसके सिर से खून टपकता था...
यही कहा हंसकर उसने, हरदम सिर ताज नहीं होते...

जो कहना है आँख बंद कर रूह से अपनी तू कह दे...
इन सब चेहरों पर लब भी हैं, ये सब हमराज़ नहीं होते...

कोयल, तोते, मैना, बुलबुल और गौरैय्या से रिश्ते हैं...
गाँवों में अब भी छत पर क्यूँ, ये चीलें, बाज़ नही होते...

मैं बोला माँ कुछ ला सका, उसने माथे को चूम लिया...
कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जो सौदेबाज़ नहीं होते...

6 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर भाव और बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ....उत्कृष्ट रचना ...!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर, सृजन के नये आयाम हर बार छू आती है आपकी रचना।

Vivek Kumar Pandey ने कहा…

i m speech less...

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Chandni ने कहा…

रिश्तों की असली परिभाषा

Prakash Sah ने कहा…

बहुत खूब!!!

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