उनपे जो झेल भूख, खेलें खेल ज़िंदगी का...
धर्म के ज़हर का कहर ढा रहे हैं वो...
महलों को भूख जब सूखे जिस्मों की हुई...
बस्तियों की हड्डियाँ चबा के खा रहे हैं वो...
वादे के बुरादे भरे खोखले चुनावी अब्र...
पाँच साल बाद फिर बरसा रहे हैं वो...
बेड के भी पास 'ज़ेड' रख के बिलों मे रहें...
सबकी सुरक्षा का बिल ला रहे हैं वो....
धर्म के ज़हर का कहर ढा रहे हैं वो...
महलों को भूख जब सूखे जिस्मों की हुई...
बस्तियों की हड्डियाँ चबा के खा रहे हैं वो...
वादे के बुरादे भरे खोखले चुनावी अब्र...
पाँच साल बाद फिर बरसा रहे हैं वो...
बेड के भी पास 'ज़ेड' रख के बिलों मे रहें...
सबकी सुरक्षा का बिल ला रहे हैं वो....
4 टिप्पणियाँ:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें
पैसा बैंक में आयेगा, आप गन खरीद लें..
Bahut sashakt rachana hai!
बेड के भी पास 'ज़ेड' रख के बिलों मे रहें...
सबकी सुरक्षा का बिल ला रहे हैं वो....
तीखा कटाक्ष ...
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