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2013
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जुलाई
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- बड़ा बेदम निकलता है...
- भूख बढ़ती ही रही और ज़िंदगी नाटी रही...
- ख्वाब में चावल के कुछ दाने दिखे...
- महफ़िलों में एक जलती नज़्म गा लेते हैं हम...
- चंद्रशेखर आज़ाद को जलते हुए सुमन..
- पेट और सीने की लौ, लय में पिरोकर देखिए...
- हो सके तो दिल को ही अपने शिवाला कीजिए...
- कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जो सौदेबाज़ नहीं होते...
- सबकी सुरक्षा का बिल ला रहे हैं वो....
- चुनावी भाषणों में अब, भुना रहे हैं यहाँ..
- आओ मिलकर ज़रा इस पर भी गौर करते हैं...
- अभी मेरे लिए हिंदोस्तान बाकी है...
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जुलाई
(12)
5 टिप्पणियाँ:
बहुत बड़ा सच छिपा है आपकी पंक्तियों में..
वाह !!! क्या बात है,बहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
एक एक बात में सच्चाई है ... बहुत खूबसूरत गज़ल
यूँ दिल की आग को आँसू से मिटाएँ कब तक...
आओ मिलकर ज़रा इस पर भी गौर करते हैं...
दमदार ...प्रभावशाली ....हृदयस्पर्शी भाव ...!!
शुभकामनायें ...!!
बहुत सुन्दर भाव!
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