अभी सुलग़ेगा वो कुछ और, शाम बाक़ी है...
हमारे बीच की बातें तमाम बाक़ी हैं...
वो बाँधती है कलावा अभी भी पीपल से...
अभी उस घर में बुढ़ापे का मान बाक़ी है...
जबसे आँगन से उखाड़ी गयी हरी तुलसी...
वो घर रहा ही नहीं, बस मकान बाक़ी है...
उठी बेटी पे जो नज़र बुरी, मिटा दी गयी...
अभी बस्ती में मेरे आन बान बाक़ी है...
आसमाँ छू के रुक गया था परिंदा देखो...
बादलों ने कहा, प्यारे उड़ान बाक़ी है...
फिर से लेने लगा है मुल्क़ मेरा अंगड़ाई...
उसे यकीं है कि बेटे जवान बाकी हैं...
वो काफिला बढ़ा मरते फकीर की जानिब
और फिर लौट गया कह के जान बाक़ी है...
हमारे बीच की बातें तमाम बाक़ी हैं...
वो बाँधती है कलावा अभी भी पीपल से...
अभी उस घर में बुढ़ापे का मान बाक़ी है...
जबसे आँगन से उखाड़ी गयी हरी तुलसी...
वो घर रहा ही नहीं, बस मकान बाक़ी है...
उठी बेटी पे जो नज़र बुरी, मिटा दी गयी...
अभी बस्ती में मेरे आन बान बाक़ी है...
आसमाँ छू के रुक गया था परिंदा देखो...
बादलों ने कहा, प्यारे उड़ान बाक़ी है...
फिर से लेने लगा है मुल्क़ मेरा अंगड़ाई...
उसे यकीं है कि बेटे जवान बाकी हैं...
वो काफिला बढ़ा मरते फकीर की जानिब
और फिर लौट गया कह के जान बाक़ी है...
करेंगे बात मज़हबों की कभी फुरसत में...
अभी मेरे लिए हिंदोस्तान बाकी है
अभी मेरे लिए हिंदोस्तान बाकी है
6 टिप्पणियाँ:
बहुत बहुत साधूवाद, एक एक शेर लाजबाब
वाह वाह.....
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...हर शेर लाजवाब!!!
अनु
धरती नहीं तो आसमान अभी बाकी है..
बहुत खूबसूरत गज़ल
बहुत उम्दा गजल,लाजबाब शेर,वाह वाह !!! क्या बात है
RECENT POST : अभी भी आशा है,
वाह …. बेहद खुबसूरत ग़ज़ल
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