मैं रोऊँ तो खुदा हँसता रहे, तो क्या बुरा होगा...
ये कारोबार यूँ चलता रहे, तो क्या बुरा होगा...
मुझे तन्हाई मे अक्सर तुम्हारा साथ मिलता है..
ये मेरा दिल यूँही तन्हा रहे, तो क्या बुरा होगा...
तू जीवन भर जलेगा क्या, यूँही अंजान लपटों मे...
घना बादल तुझे परदा करे, तो क्या बुरा होगा...
घमंडी चाँद को देखा, पिघलते बर्फ की तरह...
मेरी आँखों मे आँसू ही रहे, तो क्या बुरा होगा....
कहाँ अब चाहता हूँ तुम हथेली से छुओ मुझको...
दिया लेकिन तेरी लौ मे जले, तो क्या बुरा होगा...
तुझे देखे तो आऊँ याद मैं, चाहत नहीं लेकिन...
निशाँ मेरे तेरा किस्सा कहे, तो क्या बुरा होगा...
तुम्हारी ज़ुल्फ, चेहरे, पाँव को छूती रहे कलियाँ..
मेरी हर राह मे काँटे रहे, तो क्या बुरा होगा...
पुराने घाव भरना है, नये मिलने की तैयारी...
पुराना ज़ख़्म हर रिसता रहे, तो क्या बुरा होगा...
नमक पानी मे मिल जाने से सावन तो नही आता...
मगर पतझड़ मे कुछ नदियाँ बहे, तो क्या बुरा होगा...
मेरे घर की ये दीवारें, नशे मे हो भले डूबी...
अगर आँगन मे तुलसी भी रहे, तो क्या बुरा होगा...
20 टिप्पणियाँ:
सबको समेट लेने में क्या बुराई है।
बहुत बढ़िया......
लंबे अंतराल के बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा...
कहाँ अब चाहता हूँ तुम हथेली से छुओ मुझको...
दिया लेकिन तेरी लौ मे जले, तो क्या बुरा होगा...
बहुत खूब..
अनु
बहुत सुंदर ....
एक और दिल को छूने वाली रचना.....बहुत सुंदर।
नमक पानी मे मिल जाने से सावन तो नही आता...
मगर पतझड़ मे कुछ नदियाँ बहे, तो क्या बुरा होगा...
वाह ………बहुत सुन्दर रचना
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने
कल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मैं तबसे सोच रही हूँ ...
पुराने घाव भरना है, नये मिलने की तैयारी...
पुराना ज़ख़्म हर रिसता रहे, तो क्या बुरा होगा...
behatrin aur lajawab
क्या बुरा होगा......
शानदार!
बस यही कि इतना लम्बा अंतराल....
ये कुछ छोटा हो जाए अगली बार तो क्या बुरा होगा....
कुँवर जी,
मुझे तन्हाई मे अक्सर तुम्हारा साथ मिलता है..
ये मेरा दिल यूँही तन्हा रहे, तो क्या बुरा होगा...
क्या बात है .. क्या अदा है उनके साथ पाने की ...
बहुत उम्दा ...
wah ustad wah!
SUNDAR ABHIVYAKTI
बहुत सुन्दर गज़ल
मुझे तन्हाई मे अक्सर तुम्हारा साथ मिलता है..
ये मेरा दिल यूँही तन्हा रहे, तो क्या बुरा होगा...
बहुत उम्दा दिलीपजी!!!!!1
sundar
बहुत सुंदर .दिलीपजी
बहुत खूब सर।
सादर
पुराने घाव भरना है, नये मिलने की तैयारी...
पुराना ज़ख़्म हर रिसता रहे, तो क्या बुरा होगा..
amazing u write...
bahut achchi lagi.
नमक पानी मे मिल जाने से सावन तो नही आता...
मगर पतझड़ मे कुछ नदियाँ बहे, तो क्या बुरा होगा...
क्या बात है । अति प्रशंसनीय । मेरे पस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
आप लिखें और कुछ बुरा हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता :)
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