हमने दिन के घुप अँधियारे देखे हैं...
बुझ बुझ कर मर जाते तारे देखे हैं...
शाम मे फैले लाल खून मे सने हुए से...
थके थके बेहोश नज़ारे देखे हैं...
बोझ तले वो दबे हुए छुप छुप हैं रोते...
हंसते लब हमने बेचारे देखे हैं...
दरिया के कोने मे प्यासे हैं मर जाते...
ऐसे भी किस्मत के मारे देखे हैं...
जाने कबसे करता था वो सीली बातें...
उसके अंदर बहते धारे देखे हैं...
जब भी हम गुज़रे हैं उनके गाँव से होकर...
पोखर हमने सारे खारे देखे हैं...
रात उसे लाला के घर जाते देखा, कल...
चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...
13 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब....
deep and meaningful....
अत्यन्त प्रभावी संप्रेषण
Behtareen.....Adbhut lekhan...
It's a pleasure to read u... Superb writing..
Hats off....
i am speechless........haits off buddy for this gazal & the picture is also amazing.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर कहां जा रहे हैं हम... ब्लॉग बुलेटिन...
nishabd karti rachnaa
behad maarmik..
बेहद उम्दा और मार्मिक्।
दरिया के कोने मे प्यासे हैं मर जाते...
ऐसे भी किस्मत के मारे देखे हैं...
बहुत ही लाजवाब शेर ... सामाजिक महत्व के साथ ...
Hats off to you, sir! simply fabulous...!!
behtarin marmik rachana hai..
//जाने कबसे करता था वो सीली बातें...
उसके अंदर बहते धारे देखे हैं...
//रात उसे लाला के घर जाते देखा, कल...
चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...
sannaataa hai bas.. !!
nice dear i like it !!
i think u r a writer,,
लाजवाब प्रस्तुति....
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