चाँद तब हंसता रहा, जब दर्द हम कहते रहे...
चाँद के आँसू मगर, हमको सुबह बिखरे मिले...
फूल क्या करता जो भँवरा रस चुराके ले गया...
आदतन मजबूर सबने, फूल पर फ़िकरे कसे...
इश्क़ जो समझा किए वो था हमारा इम्तहाँ...
प्यार वो था ही नही तो, फिर भला कैसे गिले...
खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
तुमको भी क्या खूब, हो जाएगा उस दिन तजरुबा...
तुमसे गर इक दिन कभी, हम भी मिले, वो भी मिले
चाँद के आँसू मगर, हमको सुबह बिखरे मिले...
फूल क्या करता जो भँवरा रस चुराके ले गया...
आदतन मजबूर सबने, फूल पर फ़िकरे कसे...
इश्क़ जो समझा किए वो था हमारा इम्तहाँ...
प्यार वो था ही नही तो, फिर भला कैसे गिले...
खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
तुमको भी क्या खूब, हो जाएगा उस दिन तजरुबा...
तुमसे गर इक दिन कभी, हम भी मिले, वो भी मिले
19 टिप्पणियाँ:
बहुत खूबसूरत!
चाँद तब हंसता रहा, जब दर्द हम कहते रहे...
चाँद के आँसू मगर, हमको सुबह बिखरे मिले...
बेमिसाल ...ओस जैसे खूबसूरत एहसास ...और उतनी ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ....!!बधाई एवं शुभकामनायें ....!!
सदा की तरह मंजे हुए खूबसूरत शेर! पढ़वाने के लिए आभार!!
bahut hi umda ...!!
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...kamal ke sher hain.....bahut khoobsurat abhivyakti.
खुशी से मिले, गम से मिले
सुन्दर कविता..
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
Vaah ... Maza a Gaya ... Kya Gazab ka sher hai ...
इश्क़ जो समझा किए वो था हमारा इम्तहाँ...
प्यार वो था ही नही तो, फिर भला कैसे गिले...
खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
behtareen....
खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
लाज़वाब ...
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
....बिल्कुल सच कहा है इन पंक्तियों में आपने ।
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...वधाई..
बहुत बढ़िया..........
तुमको भी क्या खूब, हो जाएगा उस दिन तजरुबा...
तुमसे गर इक दिन कभी, हम भी मिले, वो भी मिले...
ये सबसे बढ़िया..
:-)
खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
हर एक शेर उम्दा और बेहतरीन है........एक कामयाब ग़ज़ल कही है आपने........दाद कबूल करे..........हैट्स ऑफ इसके लिए |
आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...
lajawab
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - " The Politician Who Made No Money - लाल बहादुर शास्त्री " - ब्लॉग बुलेटिन
अशार लाजवाब.. गज़ल मुकम्मल और मकता दिल चुराने वाला.. कुल मिलाकर शानदार!!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप...चाँद शायद हर कवि का फेवरेट होता है...:)
मैंने भी कुछ लिखा था चाँद के बारे में....
चाँद गम से चूर होकर अश्क टपकाता रहा
और सब कहते रहे ये चांदनी की रात है
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...
Bahut sundar !
कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले..
कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
har shar hi khoobsoorat.......
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