प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...

Author: दिलीप /


चाँद तब हंसता रहा, जब दर्द हम कहते रहे...
चाँद के आँसू मगर, हमको सुबह बिखरे मिले...

फूल क्या करता जो भँवरा रस चुराके ले गया...
आदतन मजबूर सबने, फूल पर फ़िकरे कसे...

इश्क़ जो समझा किए वो था हमारा इम्तहाँ...
प्यार वो था ही नही तो, फिर भला कैसे गिले...

खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...

आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...

कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...

तुमको भी क्या खूब, हो जाएगा उस दिन तजरुबा...
तुमसे गर इक दिन कभी, हम भी मिले, वो भी मिले

18 टिप्पणियाँ:

Smart Indian ने कहा…

बहुत खूबसूरत!

Anupama Tripathi ने कहा…

चाँद तब हंसता रहा, जब दर्द हम कहते रहे...
चाँद के आँसू मगर, हमको सुबह बिखरे मिले...

बेमिसाल ...ओस जैसे खूबसूरत एहसास ...और उतनी ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ....!!बधाई एवं शुभकामनायें ....!!

SKT ने कहा…

सदा की तरह मंजे हुए खूबसूरत शेर! पढ़वाने के लिए आभार!!

ASHOK BIRLA ने कहा…

bahut hi umda ...!!

Rajesh Kumari ने कहा…

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...

कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...kamal ke sher hain.....bahut khoobsurat abhivyakti.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

खुशी से मिले, गम से मिले

सुन्दर कविता..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...

Vaah ... Maza a Gaya ... Kya Gazab ka sher hai ...

Prakash Jain ने कहा…

इश्क़ जो समझा किए वो था हमारा इम्तहाँ...
प्यार वो था ही नही तो, फिर भला कैसे गिले...

खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...

behtareen....

संध्या शर्मा ने कहा…

खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...
लाज़वाब ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...
....बिल्‍कुल सच कहा है इन पंक्तियों में आपने ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद सुन्दर प्रस्तुति...वधाई..

vidya ने कहा…

बहुत बढ़िया..........
तुमको भी क्या खूब, हो जाएगा उस दिन तजरुबा...
तुमसे गर इक दिन कभी, हम भी मिले, वो भी मिले...

ये सबसे बढ़िया..
:-)

बेनामी ने कहा…

खेलते थे एक ही आँगन में कल बच्चे सभी...
सिर्फ़ इक दीवार से ही बढ़ गये हैं फ़ासले...

आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...

कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...

हर एक शेर उम्दा और बेहतरीन है........एक कामयाब ग़ज़ल कही है आपने........दाद कबूल करे..........हैट्स ऑफ इसके लिए |

rahul ने कहा…

आओ मेरा घर जला दो, मज़हबी शोलों से तुम..
काश उसके ही धुवें से, आँख मे आँसू घिरे...


lajawab

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अशार लाजवाब.. गज़ल मुकम्मल और मकता दिल चुराने वाला.. कुल मिलाकर शानदार!!

Ranjana ने कहा…

बहुत अच्छा लिखते हैं आप...चाँद शायद हर कवि का फेवरेट होता है...:)
मैंने भी कुछ लिखा था चाँद के बारे में....
चाँद गम से चूर होकर अश्क टपकाता रहा
और सब कहते रहे ये चांदनी की रात है

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले...

Bahut sundar !

***Punam*** ने कहा…

कल वो हमसे कह रहे थे, नस्ल ये बरबाद है...
वो नशे मे चूर हमको, आज महफ़िल मे मिले..


कल हमें बाजार मे, बेचा गया था पहली बार...
प्यार करते थे कभी तो, इसलिए सस्ते बिके...

har shar hi khoobsoorat.......

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