ए शाम! आख़िर तुम मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो...

Author: दिलीप /


बचपन मे जब खेल मेरा हाथ थाम चला ही होता था..
जब लगता था की बस तुम्हे छूने ही वाला हूँ...
तू जाने कहाँ छिप जाती थी...
तेरा घर निहारता था, तो बरामदे मे तुम्हारी माँ बैठी मिलती थी...
जवानी मे जब एक हाथ से कुछ एहसास बाँधे बैठता था...
बहुत मुश्किल से, कुछ डरते, कुछ छिपते...
तब भी मन करता था दूसरे हाथ से तुझे भी थाम लूँ...
पर जाने क्या जलन थी तुम्हे...
मेरे एहसास जानकर भी भाग ही जाती थी...
आज उम्र के साहिल फिर बैठा हूँ तन्हा अकेला...
तुम्हारी बाहों के इंतज़ार मे...
तुम्हारी आँखों मे हर याद फिर से जी लेने के लिए...
पर जानता हूँ तुम फिर से जल्दी मे ही होगी...
आज बता ही दो मुझे...
ए शाम ! आख़िर तुम  मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो...

20 टिप्पणियाँ:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

शाम तो तुम्हारी कविता सुनके ही लाजवाब हो तुम्हारा मुख ताकने लगेगी दिलीप.. क्या कहे बेचारी.. बस इसीलिए शर्मा जाती है.. :)

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत खूबसूरत -
जीवन के सुंदर पलों जैसी -
सुंदर रचना -
शुभकामनाएं .

Archana Chaoji ने कहा…

हाँ शाम .............जबाब दो ...........कुछ तो कहो ....वरना मेरी सुनो ...........

बेनामी ने कहा…

waah dileep bhai...
ab to shaam ko jawab dena hi hoga, itne pyaare dhang se sawal jo poocha hai aapne....

Majaal ने कहा…

शर्माती नहीं, लगता है अब्बाजान गुलज़ार से डरती है, पर हमें लगता है आप दर सवेर उनके अब्बा को मना ही लेंगे और शाम आपके नाम हो जाएगी.

sonal ने कहा…

bahut badhiyaa ..ye rang naya hai ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति ....जब से वापस लौटे हो कुछ अलग अंदाज़ है कविताओं का ....

vandana gupta ने कहा…

इस अभिव्यक्ति ने तो लाजवाब कर दिया………………गज़ब का अन्दाज़्।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

पसंद आयी आपकी 'शाम के साथ छेड़छाड़'.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

शाम को शरमायेगी
सुबह समीप आयेगी.
दोपहर दौड़ जायेगी.

arvind ने कहा…

ए शाम ! आख़िर तुम मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो.....bahut badhiya kavita.

nilesh mathur ने कहा…

वाह! क्या बात है! क्या हसीं शाम है!

Udan Tashtari ने कहा…

ए शाम ! आख़िर तुम मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो.


-काश!! शाम बता देती!!



सुन्दर!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ये शामें शरमा कर रात की चादर ओढ़ लेती हैं।

दीपक बाबा ने कहा…

तू जाने कहाँ छिप जाती थी...


आज तक क्यों छिपी है ......

इसका उत्तर चाहिए.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

..ए शाम ! आख़िर तुम मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो...
..बहुत खूब।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sunder abhivyakti.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

वाह..............क्या ख़्यालात हैं ......... बहुत सुन्दर..................

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

ए शाम ! आख़िर तुम मुझसे इतना शरमाती क्यूँ हो...
..बहुत खूब Behad bhawpurn. saargarbhit, gaagar me saagar isi ki kahte hain. Bahut dino baad aap najar aaye, kyaa baat hai?

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

kavita ke sath title bhi interesting hai..:)

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