पेट और सीने की लौ, लय में पिरोकर देखिए...

Author: दिलीप /

दूसरों के ग़म से भी आँखें भिगोकर देखिए...
तन को, चुप फुटपाथ के कंकर चुभो कर देखिए...

गर समझ आती हो मिट्टी के बेटों की कसक...
क़र्ज़ लेकर पत्थरों पर धान बोकर देखिए...

आपको लेना हो जो फाका फकीरी का मज़ा...
भीख में मिलते महल को मार ठोकर देखिए...

थक गये जो लिखते लिखते, याद से भीगी ग़ज़ल...
खून में अपनी क़लम, अबके डुबोकर देखिए...

पेट, आँखों और साँसों का समझिए फलसफा...
जून दो की रोटी की खातिर, जान खोकर देखिए...

पत्थरों से सिर रगड़ कर क्या मिला है अब तलक...
एक दिन अम्मा के आँचल में भी रोकर देखिए....

जिनको लगता इन्क़लाबी गीत लिखना है सरल...
पेट और सीने की लौ, लय में पिरोकर देखिए...

3 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ..

विभूति" ने कहा…

मन के मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 04 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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