बादल बहुत बरसा उस दिन...

Author: दिलीप /


बादल बहुत बरसा उस दिन...
आम की इक डाल से अटकी चप्पल...
गुमसुम बारिश में भीगी भीगी...
तन्हा आँखों से कुछ तलाशती...
कुछ दोस्त थे इसके...
एक नन्हा पाँव था...
कुछ गुदगुदाती उंगलियाँ....
जो हमेशा इसे साथ मे लिए...
धूप से रात तक जाने वाली सड़क घुमा देते....
एक हथेली भी थी....
जो अक्सर इसे गोद में लेकर...
उम्मीद की गोद मे देकर...
आम की डाली से कैच कैच खेलती...
अब बस आम की डाली और ये चप्पल है...
वो हाथ, उंगलियाँ, पाँव सब बाढ़ में डूब गये...
उम्मीद अभी भी दूर कहीं पर डूब रही थी....
जाने फिर वो बारिश थी या बस आँसू थे...
पर बादल बहुत बरसा उस दिन...

8 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

उफ़ बेहद मार्मिक चित्रण

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति तरसाती है, फिर सब बहा ले जाती है।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

कुछ कहना मुनासिब नहीं..............

अनु

शिवम् मिश्रा ने कहा…

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Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

मार्मिकता लिए हुए उम्दा लेखनी

बेनामी ने कहा…

वाह वाह वाह .....सुभानाल्लाह......ऐसा लगा जैसे गुलज़ार जी की कोई ताज़ी नज़्म हो.....बेहतरीन ।

सदा ने कहा…

भावनाओं का अनूठा संगम ...

देवदत्त प्रसून ने कहा…

सचमुच मन को छू लेती है,'वर्षा' की हर कोमलता |
भीगे 'पादप',विरबे'झूमे 'प्यार'उगलते 'वृक्ष,'लाता'||
कभी खुशी में, कभी ग़मों में अश्रु बहाती है 'वर्षा'-
गीत सुनाती,नाच उठी है,मस्तानी हर 'सुन्दरता' ||

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