वो दीवार हरदम ही ढाते रहे...
हम मोहब्बत का छप्पर उठाते रहे....
जब वो कह के गये थे, मिलेंगे नहीं...
फिर भला क्यूँ वो ख्वाबों में आते रहे...
एक रिश्ते की यूँ भी कहानी रही...
वो निभा न सके, हम निभाते रहे...
याद पी जब भी मैने तो कड़वी लगी...
थोड़ा आँखों का पानी मिलाते रहे...
अनसुनी कर गये पेड़ की सिसकियाँ...
वो दो नामों में मेरा मिटाते रहे...
है अजब मेरी नज़मों का देखो असर...
हम सिसकते रहे और वो गाते रहे...
हमको यादों मे अपनी किया दफ़्न पर...
ज़िक्र मेरा निगाहों मे लाते रहे...
चाँद होता रहा राख, जलता रहा...
बेख़बर थे वो परदा हटाते रहे...
9 टिप्पणियाँ:
क्या खूब -अहसासों का लफ्जों में पिरोया जाना !
बेहतरीन, निर्झर के झर झर प्रवाह सी..
एक रिश्ते की यूँ भी कहानी रही...
वो निभा न सके, हम निभाते रहे...
याद पी जब भी मैने तो कड़वी लगी...
थोड़ा आँखों का पानी मिलाते रहे...
भावमय करते शब्दों का संगम ...
एक रिश्ते की यूँ भी कहानी रही...
वो निभा न सके, हम निभाते रहे...
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आभार
Harek pankti behtareen!
बहुत खुबसूरत है ग़ज़ल।
bahut sundar , aisa lagta hai khoon me gazal daud rahi hai.
वाह!! बहुत खूब...
एक रिश्ते की यूँ भी कहानी रही...
वो निभा न सके, हम निभाते रहे..
हर शेर एक कहानी है
शायद तुम्हारी हो शायद मेरी है
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