रिश्ते इतनी आसानी से मिटते हैं क्या...
एक वक़्त था..
रिश्तें हथेली की धीमी आँच पर..
काग़ज़ रखकर पकाए जाते थे...
वक़्त लगता था पकने में..
काग़ज़ों पर दिल की बात लिखते थे...
और किताबों में धीरे से रखकर सरका देते थे...
जैसे चाँद रख दे कोई बादलों में..
और धीरे से खिसका कर सुबह को दे आए...
मुद्दतो बातें भी नहीं होती थी...
बस कुछ खुश्बुएं होती थी..
जिन्हे पिन कर लेता था इंसान कुछ ज़हेन में..
कुछ काग़ज़ पर रखे लफ़्ज़ों में...
जब वक़्त आता था रिश्तों को मिटाने का...
तो जलाना पड़ता था, दिल भी, खत भी...
जैसे सुबह के माथे पर...
सूरज रख दिया हो झुलसाने के लिए...
अब वक़्त बदल गया है...
अब वो उंगलियों की खुश्बू नहीं आती...
खत की जगह ईमेल आते हैं...
रखे रहते हैं इन्बौक्स में...
जब रिश्ते मिटाने होते हैं तो एक क्लिक होता है...
रिश्ता डिलीट...
पर कुछ रिश्ते अब भी ट्रैश और रीसाइकल बिन में...
पड़े रहते हैं बरसों तक...
कुछ रिश्ते न तब जल पाते थे...
न अब डिलीट हो पाते हैं...
जिस्म मिटते हैं रूह मिटती हैं...
पर कुछ
रिश्ते कभी नहीं मिटते...
8 टिप्पणियाँ:
जिस्म मिटते हैं रूह मिटती हैं...
पर कुछ रिश्ते कभी नहीं मिटते...
बिलकुल सच्ची सोलह आने खरी बात है. कुछ रिश्ते चाहने और मिटाने से भी नहीं मिटते...
सच कहा....रीसाइकिल बिने से भी रेस्टोर किये जा सकते हैं...
अनु
पर कुछ रिश्ते कभी नहीं मिटते...
सत्य कथन ...मनुष्य हृदय हीन कभी नहीं हो सकता चाहे कितनी ही प्रगति क्यों न हो जाये ...!!
सार्थक रचना .
वाह... बेहतरीन लिखा है!
संबंधों में गाढ़ापन आने में समय लगता है।
गजब ... वाकई कुछ रिश्ते कभी नहीं मिटते...बेहतरीन भावभिव्यक्ति।
अद्भुत पहले से अब तक का सफ़र जलाने से डिलीट करने तक.....बेहतरीन और लाजवाब।
लाजवाब...मुरीद हो गया आपका
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