मेरा, नज़मों की झाड़ू से, यूँ मन को
साफ कर देना...
तुम्हे खलता बहुत होगा, मुझे तुम माफ़ कर देना...
है ये मालूम, बन बादल, बरस कर फिर जलाएँगे...
ज़रूरी है मगर, यादों का दरिया, भाप कर देना...
सफ़र का दर्द, पतझड़, फिर बहारें और फिर पतझड़....
किसी को आप से तुम, और फिर से, आप कर देना...
मैं यादों को बना नश्तर, खुला रखता हूँ ज़ख़्मों
को...
मुझे अच्छा सा लगता है, खरोन्चे घाव कर लेना...
तड़पने का मज़ा बढ़ता है, जितना जल्दी डूबोगे...
अकलमंदी है, चाहत के सफ़र में, नाव भर लेना...
खुदा मुझको समंदर दे दिया है, ग़म नहीं मुझको...
मगर जिसको भी अब देना, ज़रा सा नाप कर देना...
तुम्हे तकलीफ़ ही देंगी, हैं बेमौसम, मेरी ग़ज़लें...
कभी छतरी, कभी स्वेटर, कभी तुम छाँव कर लेना...
अंधेरी राह, पत्थर, आग, दलदल और काँटों से...
तुम्हें
पड़ता है, यूँ होकर गुज़रना, माफ़ कर देना..
9 टिप्पणियाँ:
गहरी..
बहुत उम्दा!
शेअर करने के लिए आभार!
वाह....!
कुँवर जी,
सफ़र का दर्द, पतझड़, फिर बहारें और फिर पतझड़....
किसी को आप से तुम, और फिर से, आप कर देना...
आपकी हर रचना अद्वितीय होती है....लाज़वाब....
सफ़र का दर्द, पतझड़, फिर बहारें और फिर पतझड़....
किसी को आप से तुम, और फिर से, आप कर देना...
bahut khubsurat si gazal
बहुत गहरे भाव लिखे लगे...........लगा साबरी ब्रदर्स की तरह गाया जाए......
Dilip ... Loved this one... can I share it (* with credit to you of course!) with my friends fo a poetry group?
@rachna.. sure my pleasure...:) shukriya doston
बहुत बढ़िया।
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