फिर अधूरा हो गया हूँ...

Author: दिलीप /


सियासत और मज़हब का सा रिश्ता हो गया हूँ...
बड़ी जद्दोजहद के बाद इंसां हो गया हूँ...

मुझे सिर पर चढ़ाया, डूबने को फेंक आए...
मैं पत्थर का कोई बेबस, खुदा सा हो गया हूँ...

मेरे अपने, मेरे चुकने की राहें ताकते हैं...
पुराने क़र्ज़ का कोई, बकाया हो गया हूँ...

तुम्हारे साथ था तो आसमाँ ढकने चला था...
तुम्हारे बाद इक उधड़ा सा धागा हो गया हूँ...

यहाँ पर लोग पास आए, बुझाई प्यास अपनी...
मगर लगता है अब सूखे कुएँ सा हो गया हूँ...

तुम्हारा साथ शायद सिर्फ़ इक शाही भरम था...
मैं अब बस वक़्त के हाथों का प्यादा हो गया हूँ...

कई ग़ज़लें जो दिल के बोझ से कुचली गयी हैं...
उन्हीं का ख़ूं से लथपथ एक हिस्सा हो गया हूँ...

मुकम्मल हो सकूँ शायद, मेरी किस्मत नहीं ये...
अधूरा ही चला था, फिर अधूरा हो गया हूँ...

10 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi ने कहा…

मुकम्मल हो सकूँ शायद, मेरी किस्मत नहीं ये...
अधूरा ही चला था, फिर अधूरा हो गया हूँ...
bahut sundar ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मुझे सिर पर चढ़ाया, डूबने को फेंक आए...
मैं पत्थर का कोई बेबस, खुदा सा हो गया हूँ...

अच्छा शेर.....................

अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अधूरा अधूरा,
भरा सा, जरा सा,
धीरे से पूछो,
अभी भी हरा सा,

संध्या शर्मा ने कहा…

मुकम्मल हो सकूँ शायद, मेरी किस्मत नहीं ये...
अधूरा ही चला था, फिर अधूरा हो गया हूँ...

लाज़वाब...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शब्दों में छिपा दर्द साफ झलक रहा है ...हमेश की तरह जानदार...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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बेहतरीन रचना

केरा तबहिं न चेतिआ,
जब ढिंग लागी बेर



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♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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नीरज द्विवेदी ने कहा…

तुम्हारा साथ शायद सिर्फ़ इक शाही भरम था...
मैं अब बस वक़्त के हाथों का प्यादा हो गया हूँ...
... Bahut hi behtareen ek se badh ke ek.,

vandana gupta ने कहा…

बहुत शानदार प्रस्तुति।

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन और लाजवाब।

सदा ने कहा…

मुझे सिर पर चढ़ाया, डूबने को फेंक आए...
मैं पत्थर का कोई बेबस, खुदा सा हो गया हूँ...
अनुपम भाव ...

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