कुछ लाल रंग का उपयोग कर लिखा है उम्मीद है पसंद आये....हर पंक्ति में लाल शब्द या उससे जुड़े किसी शब्द का उपयोग किया है....एक छोटा सा प्रयोग और आवाहन...
एक समय था लाली अद्भुत आसमान में सजती थी...
सिंदूरी सी सांझ कभी तो भोर लालिमा रहती थी...
मनुज धमनियों मे भी गहरा लाल द्रव्य तब बहता था...
लाल चुनरिया ओढ़ लाज में, चंद्रवदन तब रहता था...
सावित्री तब लाल धार से माँग सजाए रहती थी...
मातायें भी संतानों को लाल लाल ही कहती थी...
लाल मुखी हो जाते थे सब, निर्बल जन जब घुटते थे...
क्रांति क्रांति के स्वर रक्तिम से श्वासों से जल उठते थे..
अंबर का वो लाल रंग अब बस धरती पे सजता है...
धरती माँ का लाल वीर, विश्वासघात से मरता है...
घर की मर्यादा की लाली, व्यापारों मे सजती है...
क्रोध अग्नि वो लाल मुखों की, वो भी फीकी रहती है...
गीदड़ आ कर चाट गये, हैं माँगे लाल नही सूनी...
क्रांति स्वरों की रक्तिंता को, युवा जाति मद मे भूली...
लाल रंग बस धू धू करते, जलते घर मे मिलता है...
पुष्प नहीं अब लाल प्रेम का, नागफनी ही उगता है....
अब तो गीली आँखों मे कुछ रक्तिम से अंगार भरो..
जल से भरी धमनियों मे कुछ लाली का संचार करो...
कालिख से तो अच्छा ही है, लाल सदा इतिहास रहे...
लाली पूरब की ना खोए, नवजीवन का श्वास बहे...
29 टिप्पणियाँ:
और तो कुछ नही कह सकते सिवा इसके; लाल देह लाली लसै अरु धरि लाल लन्गूर बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपिसूर अंबर का वो लाल रंग अब बस धरती पे सजता है...
धरती माँ का लाल वीर, विश्वासघात से मरता है...
घर की मर्यादा की लाली, व्यापारों मे सजती है...
क्रोध अग्नि वो लाल मुखों की, वो भी फीकी रहती है... इसके लिये ही दानव दलन की जरूरत है।
ab hanumaan ji to aa nahi rahe sir hame hi kuch karna padega..in daanvon ke dalan ke liye...
बहुत खूब ,सारे अलंकार याद आ गए हिंदी साहित्य के ....
सभी पंक्तिया पसंद आई
भूल गए बलिदानी थाती लाल रंग क्यूँ याद रहे
भूल गए माँ बहनों की इज्जत, देश उन्हें क्या याद रहे
लाल रंग मदिरा का हो तो नौजवान अब झूमता है
मानवता को कुचलने को लाल रंग अब दिखता है
जब चीत्कारें सुनकर भी हम नींद से जाग नहीं पाए
लाल रंग क्या याद रहे जब माँ को माँ ना कह पाए |
रत्नेश त्रिपाठी
लाली पूरब की ना खोए, नवजीवन का श्वास बहे..
बहुत बढिया !!
Sonal ji Ratnesh ji aur Sangeeta ji bahut bahut dhanywaad.....Ratnesh ji aapki tippani bhi bahut mahatvpoorn aur vichaarneey hoti hai...abhaar
वीर तुम बड़े चलो .....................
हमेशा कि तरह एक और दहकती रचना |
बहुत बेहतरीन प्रयोग भाई....
लाली मेरे लाल की
जित देखू तित लाल
लाली देखन मैं गयी
मैं भी हो गयी लाल
आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
"...फिर उन्ही दिनों एक हिंदी फिल्म 'इन्कलाब' का निर्देशन और लेखन किया ..." आपके प्रोफ़ाईल में यह दर्ज है ... क्या यह वही फ़िल्म है जिसमे अमिताभ बच्चन थे ?
....फ़िल्म निर्देशन के बाद नौकरी में क्या कहानी है ?
bahut khub
aap ko badhai is ke liye
ye shahityik pankiya aap ko nai pahchan degi
अंबर का वो लाल रंग अब बस धरती पे सजता है...
धरती माँ का लाल वीर, विश्वासघात से मरता है...
घर की मर्यादा की लाली, व्यापारों मे सजती है...
क्रोध अग्नि वो लाल मुखों की, वो भी फीकी रहती है...
बहुत अच्छी पंक्तिया ,,,,,
लाल रंग पर इतना कुछ और अच्छा लिखना आपकी कल्पनाशक्ति को नया आयाम देते है ,,,,
आपके सुखद भविष्य की शुभकामनाएं ....-राजेन्द्र मीणा
लाली पूरब की ना खोए, नवजीवन का श्वास बहे..
बहुत बढिया !!
Dua karti hun,aapki yah muraad poori ho!
khubsurat...raang baadhta raahe
अंबर का वो लाल रंग अब बस धरती पे सजता है...
धरती माँ का लाल वीर, विश्वासघात से मरता है...
घर की मर्यादा की लाली, व्यापारों मे सजती है...
क्रोध अग्नि वो लाल मुखों की, वो भी फीकी रहती है...
बहुत अच्छी पंक्तिया
आपके सुखद भविष्य की शुभकामनाएं
very nice!
bahut badhiya, laal rang ko to aapne our hi rangeen banaa diya ....vaah.
अब तो गीली आँखों मे कुछ रक्तिम से अंगार भरो..
जल से भरी धमनियों मे कुछ लाली का संचार करो...
कालिख से तो अच्छा ही है, लाल सदा इतिहास रहे...
लाली पूरब की ना खोए, नवजीवन का श्वास बहे...
delip ji
शुक्रिया ,
बहुत अच्छा कहते हो मेरे भाई ,लाल रंग का प्रयोग ,मां ,क्लब ,चाँदनी ......सब रचनायें उम्दा हैं
GOD BLESS U .
अब तो गीली आँखों मे कुछ रक्तिम से अंगार भरो..
जल से भरी धमनियों मे कुछ लाली का संचार करो...
कालिख से तो अच्छा ही है, लाल सदा इतिहास रहे...
लाली पूरब की ना खोए, नवजीवन का श्वास बहे.
बहुत ही ओजपूर्ण रचना .....
लाल शब्द का बेह्तरीन प्रयोग करके बहुत ही प्रभावशाली रचना लिखी है।
Uday ji ye inqlaab college me banayi thi...:) sab sath waale hi the....
ab to sab kaalaa hai bhai ...karm, dhan ,charitra sab...vishesh kushee huyee ek nayaa prayog dekh kar....bahut khoob
bahut abhaar sabhi mitron aur shubhchintakon ka...
बहुत दिनों के बाद इतनी सशक्त अभिव्यक्ति पढनें का मौका मिला है। भाई दिलीप वाकई में मां सरस्वती का आशीष है तुम पर..
जियो!
बहुत सुन्दर रचना ..जोश भरती हुई
kya baat hai bahut innovative...
laali mere laal ki jit dekhun tit laal
lali dekhan main gayi , main bhi ho gayi laal...
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