जब भी मैं गिरा आँख से आँसू तेरे गिरा...
मुझको जो सदा थामता आँचल का वो सिरा...
शीत मे छाती से वो चिपका हुआ बचपन...
वो गोद मे तेरी कहीं दुबका हुआ बचपन...
मैं चल रहा समेटते यादें यूँ अनमना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
उज्ज्वल भविष्य की हृदय में कामना लिए...
मन युद्ध मे वियोग का तू सामना किए...
जल जल के स्वयं मुझको यू आलोक सा दिया...
मन मे तो कष्ट था परंतु शोक ना किया...
तू सह रही चुपचाप क्यूँ विरह की वेदना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
इस जग मेरे नाम से पहचान तेरी हो...
कारण मेरे खिलती कभी मुस्कान तेरी हो...
ऐसा तो कोई कर्म कभी कर न सका मैं...
आशाओं का ये कुंभ कभी भर न सका मैं...
इक युद्ध सा स्वयं से मेरा आज है ठना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
मैं भी तो कर्म पथ पे बहुत दूर तक चला...
इस कर्म मोहिनी ने मुझे देर तक छला...
विस्मृत मैं करूँ कैसे वो ममतामयी दुलार...
कैसे करूँ सूना तेरा आँचल मैं तार तार...
स्पर्श चाहिए तेरा वो प्रेम से सना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
मैं तो प्रभु नहीं की ये जन्मों की बात हो...
भूत का भविष्य का हर भेद ज्ञात हो...
मैं तो नहीं इस सृष्टि के कण कण मे समाया...
ममता भरे हृदय मे तो तूने ही बसाया...
हर स्वप्न स्वयं का तुझे आधार ले बुना...
अच्छा ही हुआ माँ! यदि मैं कृष्ण न बना...
34 टिप्पणियाँ:
तू सह रही चुपचाप क्यूँ विरह की वेदना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
कितना सुन्दर... कितनी सुन्दर पंक्तियां. पूरी कविता एक सांस में पढ गया। इसका प्रिंट निकाल कर कल अम्मा को सुनाऊंगा। बहुत अच्छे दिलीप भाई।
fir ek dhaardaar geet.. badhjai Dileep..
कमाल कि रचना है, तारीफ के लिए शब्द नहीं है, शानदार............बेहतरीन..........
iss umra mey iss tarah kaaaadhyatmik bodh...? badhai.issi tarah sundar spch ke sath kalam chalati rahe.
बेहतरीन रचना.........बहुत अच्छे दिलीप!
kya kahu...adbhut hai ye...har ke rachna aapki behtrin hai...
बहुत सुन्दर और प्यारी रचना...बधाई
जिसने माँ को यशोदा मान लिया हो वो कृष्ण कैसे न होगा ...
मैं भी तो कर्म पथ पे बहुत दूर तक चला...
इस कर्म मोहिनी ने मुझे देर तक छला...
विस्मृत मैं करूँ कैसे वो ममतामयी दुलार...
कैसे करूँ सूना तेरा आँचल मैं तार तार...
Maa ko to bas itna ahsaas kaafee hai,ki,aulad ne use yaad kiya!Garimamayi rachna hai!
बेहतरीन रचना
आशिर्वाद...........इससे ज्यादा क्या कहूँ......
" "कॄष्ण" तुम हो नही ..मुझे लगते हो "राम" से ,
माता से दूर वनवास.. गए हो अपने काम से ......
बहुत सुन्दर रचना है!
--
शुभकामनाएँ!
...प्रसंशनीय रचना!!!
जब भी मैं गिरा आँख से आँसू तेरे गिरा...
मुझको जो सदा थामता आँचल का वो सिरा...
शीत मे छाती से वो चिपका हुआ बचपन...
वो गोद मे तेरी कहीं दुबका हुआ बचपन...
बहुत सुन्दर , वैसे तो पूरी रचना ही सुन्दर है ।
मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
कमाल कि रचना है, तारीफ के लिए शब्द नहीं है,
अच्छा ही है जो यशोदा का कृष्ण ना हुआ ...आखिर तो कृष्ण मथुरा के ही होकर रहे ...!!
aapki kavita par "Archna" ji no jo comment kiya hai wo to sone pe suhaga hai ........ man ko chu lene wali rachna .......great.......
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना..
-बहुत कोमल..बहुत सुन्दर!!
aap sabhi ka tahe dil se shukriya...
हर स्वप्न स्वयं का तुझे आधार ले बुना...
अच्छा ही हुआ माँ! यदि मैं कृष्ण न बना.....aapki har rachna laajabab hoti hai.
bahut sunder dilipji
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
बहुत प्यारा गीत.
मैं तो प्रभु नहीं की ये जन्मों की बात हो...
भूत का भविष्य का हर भेद ज्ञात हो...
मैं तो नहीं इस सृष्टि के कण कण मे समाया...
ममता भरे हृदय मे तो तूने ही बसाया...
हर स्वप्न स्वयं का तुझे आधार ले बुना...
अच्छा ही हुआ माँ! यदि मैं कृष्ण न बना...
बहुत ही सुन्दर दिलीप जी, बहुत सुन्दर !
दिलीप भाई, जब मैं आता हूँ आपके ब्लॉग पे, बस पढ़ के चल जाया करता हूँ..समझ में नहीं आता क्या लिखूं...इतने अच्छे अच्छे कविताओं को बस "अच्छा" कह के चले जाना सही नहीं है :)
लेकिन इस कविता पे बिना कमेन्ट किया नहीं रहा गया..अब आप खुद ही समझ लें :)
"पुत्र कुपुत्रो जायेतक्वचिदपि माता कुमाता न भवति" दिलीप भाई आ गया फिर घुरुवा(कचरे का ढेर) सहित।
Jitni bhi tareef karun...kam hogi.
Badhaai !
मनमोहक!
--
आपसे परिचय करवाने के लिए संगीता स्वरूप जी का आभार!
--
आँखों में उदासी क्यों है?
हम भी उड़ते
हँसी का टुकड़ा पाने को!
बहुत सुन्दर रचना है!
मैं चल रहा समेटते यादें यूँ अनमना...
तू तो यशोदा है मगर मैं कृष्ण न बना...
बहुत ही सुंदर रचना है .... बहुत कुछ कहती हुई ...
दिलीप जी..
चर्चामंच में आपकी यह रचना पढ़ी.. बेहद हृदयस्पर्शी रचना ..
मैं तो प्रभु नहीं की ये जन्मों की बात हो...
भूत का भविष्य का हर भेद ज्ञात हो...
मैं तो नहीं इस सृष्टि के कण कण मे समाया...
ममता भरे हृदय मे तो तूने ही बसाया...
हर स्वप्न स्वयं का तुझे आधार ले बुना...
अच्छा ही हुआ माँ! यदि मैं कृष्ण न बना...
शुभकामनाएं ...
मुदिता
मर्मस्पर्शी कलम है
आज के युग में संवेदनशील हो
बधाई के पात्र हो !
मेरा आशीष !!! मर्मस्पर्शी कलम है
आज के युग में संवेदनशील हो
बधाई के पात्र हो !
मेरा आशीष !!!
Behad hridaysparshi rachana hai bhai ji....bahut sundar...!!
Bahut khushi ki baat hai ki aap jaise poet avi v hain jo spirituality ki yaad tAaza KaRte hain
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