जानता हूँ ये कविता कि भाषा नहीं है...पर जो कुछ देख रहा हूँ उसके बाद दिल यही कह रहा है...किसी को बुरा लगे मेरी भाषा से तो क्षमा चाहता हूँ...
जहाँ किया मन हवस मिटा ली...
नाम बन गया है बस गाली...
झुंड बना कर घूम रहे हैं....
लोभी अवसर ढूँढ रहे हैं...
मन नंगा तन पे लत्ते हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...
रात जागते और नाचते...
टेढ़ी दुम के साथ भागते...
बातों मे तो भौंक रहे हैं...
ऊँची ऊँची छौंक रहे हैं...
डरते ज्यों सूखे पत्ते हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...
टूट पड़ें हम मिले जो अवसर...
संस्कार की छीछालेदर...
दूजों की दुम चाट रहे हैं...
अपनों को ही काट रहे हैं...
आदमख़ोरी के छत्ते हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...
भला किसी का हो तो रोयें...
हर दामन मे काँटे बोयें...
हैं आवारा ध्येय नही है...
उपकारी मन देह नहीं है...
पेट पुजारी हम जत्थे हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...
वो मालिक का साथ निभाए...
हम तो खुद का मान लुटाए....
मर जाते वो रखवाली में...
छेद बनाते हम थाली में...
वफ़ादार वो बिन भत्ते हैं...
हमसे तो अच्छे कुत्ते हैं...
46 टिप्पणियाँ:
आज के परिपेक्ष्य में सटीक रचना ....
आपने कुत्तों की भावनाओं को जो स्वर दिया है वह काबिले तारीफ है।
आपको बधाई।
nice
सटीक रचना.
मानव के मारे मूक श्वान
सहते बेचारे हैं अपमान!
bahut acchhi rachna...kabhi kabhi aisa hota hai na ki koi vipreet kataaksh positive soch lata hai...aur aisa hi kuchh lagta hai aur umeed c jagti hai ki shayed ise padh kar kuchh sudhar ki taraf soch kayam ho.
बेहद सहज प्रवाह मयी रचना
...क्या बात है ... प्रसंशनीय !
daad deni hogi kalpana shakti kii. bahut khoob!
कसम खा रखी है हर kavitaa में वाह वाह बटोरने की ... एक और उम्दा रचना
आज के दौर की सच्चाई लिखी है तुमने ! आभार !
इंसानियत को ढूँढती हुई कविता। एक और अच्छी रचना।
सचमुच हमसे बेहतर तो शायद कुत्ते हैं
वफ़ादार वो बिन भत्ते हैं...
हमसे तो अच्छे कुत्ते हैं...
Zabardast kataksh hai...kutta hona shayad behtar hai..usme wafa ka ansh shamil hai...aur kutta kaat le to kuchh ilaaj bhi ho sakta hai..jise aadmi kaat le wo bach nahi sakta..
बेहद सटीक रचना!
आज के इस दौर में इन्सान को कुत्ता कहना भी कुत्ते का ही अपमान है...
बात तो एकदम सटीक कही..और कैसे चित्रण कर पाते इस बात का इस अंदाज में. सही है.
आज के परिपेक्ष में सटीक व्यंग है...
भाषा का है...आज कल तो ऐसी ही भाषा का चलन भी है...गुलज़ार साहब ने काफी कुछ आसन कर दिया है :)
शुक्रिया...
नई भाषा का प्रयोग... गहरा व्यंग्य ... प्रभावित करता है..
बहुत सुन्दर
आईये सुनें ... अमृत वाणी ।
आचार्य जी
मर जाते वो रखवाली में
छेद करते हम थाली में
हमसे अच्छे तो कुत्ते हैं ...
नतमस्तक हूँ आपकी इस नैतिक ईमानदारी के आगे ....!!
वाह वाह
धन्यवाद
मुझे तो हमेशा से लगता है कि कुत्ते हमसे तो अच्छे हैं क्योंकि वो जो हैं वैसे ही दिखते हैं... दोहरा चरित्र नहीं होता उनका, भूख लगती है तो छीनकर खाते हैं पर बिना वजह दूसरों की रोटी नहीं छीनते... और वफादारी में तो उनका कोई सानी नहीं... कुत्ते कभी धोखा नहीं देते... ये बात बिल्कुल सही है---
मर जाते वो रखवाली में
छेद करते हम थाली में
हमसे अच्छे तो कुत्ते हैं ...
एक मारक कविता ...
karara kataksh hai dilip ji..
bahut satik...
bahut achchi rachna
भला किसी का हो तो रोयें...
हर दामन मे काँटे बोयें...
हैं आवारा ध्येय नही है...
उपकारी मन देह नहीं है...
पेट पुजारी हम जत्थे हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...
बहुत खूब दिलीप जी , कुछ-कुछ समझ गया कौन सा दर्द उकेरा है आपने !
बेहद सटीक व्यंग्य रचना ।
इस पेज पर उपलब्ध सभी
रचनाओं का अवलोकन किया ।
सीधे सरल..साफ़ शब्दों..बिना लाग
लपेट..के कही गयी बात नजर आयी ।
प्रशसनीय प्रस्तुति..।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
खतरनाक बात कही जी.....
नाहक ही गाली बना दिया गया बेचारों के नाम को.....
कुंवर जी,
सच में कुत्तों कि कद्र एक आदमी से कहीं ज्यादा है | बहुत सही सोहा है |
आशा
श्रीमान, बहुत खूब लिखते हैं आप. और उससे कहीं ज्यादा अच्छी बात यह है की कवि (लेखक जो भी ) के कर्तव्य को बखूबी समझते हैं. मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें ......
हमेशा की तरह सटीक और शानदार कटाक्ष्।
व्यँग के साथ मुद्दे की बात कह जाना कोई आप से सीखे ...न ताल टूटे न कोई शब्द ही छूटे...वाह-वाह
सच में अब तो मानव से अच्छे जानवर ही हैं..सटीक रचना .बधाई स्वीकारें.
sabhi mitron ka abhaar mere dil ki awaz me awaz milane ke liye...
सटीक रचना...
A very hard hitting poem....man ko jhakjhorne waali..
नमस्ते दिलीप!! दीदी से आपकी कविताओं के बारे मे जाना... आप बहुत उम्दा लिखते हैं और वे उन्हे उतनी ही अच्छी तरह से पढती हैं. :) आपकी ’दिल की कलम’ से लिखी गईं बातें पढने वाले के दिल के कागज पर छप सी जाती हैं... मैने आपकी कई सारी कविताएं पढी हैं. सीधे और सरल शब्दों मे आप हमारे आस्पास के सामाजिक तथ्यों को अच्छी तरह रखते हैं और हमे सोचने को मजबूर कर पाते हैं..... शुभकामनाओं के साथ -- रचना.
गहरे भाव लिये हुये सुन्दर अभिव्यक्ति ।
भला किसी का हो तो रोयें...हर दामन मे काँटे बोयें...हैं आवारा ध्येय नही है...उपकारी मन देह नहीं है..... बहुत सुंदर
याद आ गयी एक पुरानी मशहूर रचना - श्वानों को मिलता दूध भात , छोटे बच्चे अकुलाते हैं , माँ की छाती से चिपक चिपक ,जाड़े की रात बिताते हैं .................साधुवाद
shaandaar tanz kase hain dilip.. sahi hai yaar... mere chote bhai ne bhi kuch aisi hi baten likhi theen .. :) lekin tumne jis tarah likha hai kavyatmak...geetatmak..aur ghatak,,maarak..uska zawaab nahi
बहुत बढिया लिखा !!
सुन्दर कटाक्ष !!!
bahut khoob
ashok jamnani
बात तो एकदम सटीक कही..इस अंदाज में. सही है.
Adbhut! Bas sabke man ki baat aapne shabdon me uker di!
गज़ब का लिखते हो, लगता है बहुत कुछ देकर जाओगे ! हार्दिक शुभकामनायें !!
जियो!
अब पढ़ना ही होता रहेगा, टीपने में ज़ोर कम रहेगा। आप अच्छा लिख रहे हैं - सो बार-बार कहने से कुछ फ़ायदा नहीं, अगर कहीं टोकना होगा - तो बताऊँगा।
बधाई!
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