व्यथा हृदय की किसे सुनाऊं शोकाकुल ये मन है...
कभी जहाँ सुख नाद गूँजता अब बस सूनापन है...
जन्म हुआ जब मेरा, घर का सूना आँगन महका...
अम्मा बाबा दोनो का ही अंतर्मन था चहका...
इच्छा भी न कर पाती और चीज़ सामने होती...
कभी बहे न इन आँखों से दुख के खारे मोती...
बचपन सारा खेल खेल मे मासूमी से गुजरा...
यौवन मे भी रंग प्रेम का जीवन से न उतरा...
मिला एक हमराही ऐसा, हृदय प्रेम मे डूबा...
इतना मैने सुख पाया की सुख से मन था ऊबा...
गयी थी जब ससुराल वहाँ भी ममता ही बहती थी...
सास मेरी माँ की मूरत थी लाड़ बड़ा करती थी...
फिर इक दिन आँगन मे मेरे दो दो पुष्प खिले थे...
उस दिन निज आँगन के सारे पूरे चित्र हुए थे...
उनपर मैने स्नेह लुटाया, उनसे आदर पाया...
संस्कार से सींच सींच कर उनको आज बढ़ाया...
फिर उनका परिवार बसा मैं भी उसका हिस्सा थी...
शायद मैं सौभाग्य का कोई अमिट अमर किस्सा थी...
न ही कोई चिंता थी न कभी हुई बेचैनी...
इसी तरह इक रात चैन से अंतिम साँसे ली थी...
फिर आई मैं स्वर्ग जहाँ पर दिया भाग्य ने धोखा...
चित्रगुप्त ने खोला मेरा सारा लेखा जोखा...
व्यथित बड़े यमराज हुए जब सारी बातें जानी...
बोले वो क्या करूँ तुम्हारा, तुम हो अद्भुत नारी...
बचपन मे अपनो ने मारा, एक जगह हैं रहती...
एक जगह जो घरवालों की रही यातना सहती...
अग्नि मे झोंका लोभी ने उनका वो है कोना...
अपनों ने ही त्यागा जिनको उनका वहाँ बिछौना...
बँटे हुए हैं क्षेत्र सभी के, कष्ट बना आधार...
और तुम्हें न कष्ट मिला न दुखी हुई इक बार...
तुम्हे यहाँ न मिलेगा साथी न ही एक सहेली...
उस हिस्से मे ही भटकोगी तुम दिन रात अकेली...
इतना कह वो चले पलट कर एक दृष्टि न डाली...
स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी....
27 टिप्पणियाँ:
"स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी...."
बेहद उम्दा दिलीप |
Behad sundar chitran hai ek bhagyawaan nari ke jeevan ka..aur phir vidambana!
स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी...
koi problem nahi hona bhi problem hota hai..
jeewan sukh aur dukh donon ka mela hona chahiye...jaise roj roj polaao koi nahi kha sakta kabhi kabhi khichadi bhi chahiye....
acchi prastuti...
अर्थात नारी वही है जो कष्ट में रहती हो। कुछ समझ नहीं आया भाई आपका भाव। हम तो यह कहते हैं कि नारी वो जो सारे कष्टों को मिटाना जानती हो।
@Ajit ji ye ek vyang tha...naariyo ki durdasha pe...yahi kaha ki aaqj naari ko itna kasht hai ki swarg me aisi naari durlabh ho rahi hai jisne sab sukh paaye ho...
नया आयाम! पर क्या हमरे भाव नारी की व्यथा पर ही जागते है? माना नारी का शोषण हुआ और होता है आज भी. पर आपकी यह कल्पना मुझे और काफी मेरे जैसे लोगो को उदास करती है, जिनकी बहने है और उनकी ख़ुशी के लिए हर समय सोचते है. आपकी सभी रचनाये मुझे अछी लगती है. पर यह पहली रचना है जिस ने उदास कर दिया. फिर भी आपकी रचना के लिए भधाई!
Khanna sir ji bas ye samaaj par ek vyang likha...jaanta hun ab jamana badal raha hai...aur wo bhi aap jaise logo ki hi wajah se...fir bhi jo thoda bahut abhi bhi baaki hai bas us par prahaar karne ka yatn kiya tha...
nari ki vyatha ka marmik varnan...
व्यंग रूप में सजीव चित्रण....पर ऐसी नारी जिसको इस धरती पर बस सुख ही सुख मिले....कल्पना में आई कैसे? चलो भाई हम तो निष्फिक्र हुए...स्वर्ग..नर्क जो भी मिलेगा अकेले नहीं रहना पड़ेगा.. हा हा हा ...और यमराज भी परेशान नहीं होंगे...
अति भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत खूब!
आईये जानें ... सफ़लता का मूल मंत्र।
आचार्य जी
Bahut khoob Dilip ji
अग्नि मे झोंका लोभी ने उनका वो है कोना...
अपनों ने ही त्यागा जिनको उनका वहाँ बिछौना...
बहुत दर्द है ... भाव अपरिमित
बेहतरीन
इतना कह वो चले पलट कर एक दृष्टि न डाली...
स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी....
वाह..वाह!
दिलीप जी...
रचना के साथ टेम्प्लेट भी बहुत बढ़िया लगाया है!
बहुत खूब, लाजबाब !
"नारी के सुख दुख को सन्जोया कविता है कितनी प्यारी" बहुत खूब दिलीप भाई।
व्यंग रूप में सजीव चित्रण.
आपकी यह कविता बहुत पसंद आई है...धन्यवाद..”
अति सबहुत अच्छा।
स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी...."...gajab ki soch, saarthak.rachnaa.
...बेहतरीन भाव ....प्रसंशानीय रचना!!!
bahut khoob ,vyang bhi,aur samvedansheelata bhi ,aur ek nazariya bhi,hamare desh me nari ka paryay sirf dukh hi man liya gaya hai.
कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...
थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी...
बहुत सुन्दर, एक अलग अंदाज़!
kya baat hai dilip bhai ...kya bat hai .... sach me dunia me sab kuch aisa hi hai ..sukh ke bina dukh ka mol nahi ....dukh ke bina sukh ... mujhe bahut pasand aayi rachna...
चलेगा दिलीप भाई ..स्वर्ग में अकेलापन भी चलेगा | पर काश नारियों को धरती पर इस नारी सा सुख नसीब हो | सुन्दर और अलग सोच |
पहले थोड़ी अटपटी रचना लगी थी, पर आपके स्पष्टीकरण के बाद समझ में आ गया कि यह पूरी तरह व्यंग्य ही है...पर फिर भी थोड़ी नकारात्मक है. ऐसा नहीं है कि सभी नारियाँ दुखी होती हैं. बहुत सी औरतें ऐसी हैं, जो अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हैं. कम हैं, पर हैं ऐसी भी नारियाँ. इसलिए स्वर्ग में एक सुखी नारी को स्थान न मिलना थोडा ही नकारात्मक हो गया...
खैर कुल मिलाकर बिल्कुल नए ढंग से आपने नारी-शोषण की बात की. अच्छा लगा.
बहुत खूब ........शुभकामनायें !
बँटे हुए हैं क्षेत्र सभी के, कष्ट बना आधार...और तुम्हें न कष्ट मिला न दुखी हुई इक बार...तुम्हे यहाँ न मिलेगा साथी न ही एक सहेली...उस हिस्से मे ही भटकोगी तुम दिन रात अकेली...
इतना कह वो चले पलट कर एक दृष्टि न डाली...स्वर्ग मिला पर वो भी कैसा एक दम खाली खाली...कोस रही मैं ईश को क्यूँ दी इतनी खुशियाँ सारी...थोड़े देते कष्ट मुझे तो मैं भी रहती नारी...
ek dam uniqe rachna hai aapki .........
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