कुछ बातें बहुत विचलित कर देती हैं...जरा सी हार पर ये समझना कि ज़िन्दगी के सब रास्ते बंद हो गए...और जीवन जैसे अनमोल उपहार को तोड़ कर फेंक देना और मौत को गले लगा लेना...जब तक हार न मानो हार नहीं होती....बस ये प्रयास है छोटा सा..उनसे कहने का कि....कोशिशों की अब भी आख़िरी तो साँस थी बची...
ज़िंदगी की आँधियों मे धूल से सना हुआ...
था खड़ा बवन्डरो मे मुश्किलों के, मैं तना...
कल ही टूट कर मगर बिखर गया था हौसला...
था हृदय मे जल रहा, उम्मीद भरा घोंसला...
मन के सारे दीपकों का तेल सारा चुक गया...
हार भरे मौसमों से मन का पेड़ थक गया...
ज़िंदगी की साँस मे जो मुद्दतो से घुल रहा..
उस ज़हर को काटने की खोज मे ये मन चला...
ढूँढ ढूँढ थक गया तो आस की किरण दिखी...
कुछ ज़हर की शीशियों मे बंद जीत थी मेरी...
मौत का जो डर छिपा था, कल कहीं वो खो गया...
मौत के सुकूँ भरे, मैं बिस्तरों पे सो गया...
कुछ तड़प के बाद मुझको मिल गया जहाँ नया...
हार जैसे खो चुकी थी जीत का समा दिखा...
अब नही थे आँधियों के तीर मुझको गड़ रहे...
अब नही थे स्वप्न आँसुओं से भीग सड़ रहे...
पर तभी वो जीत का नशा कहीं था खो गया...
सामने दुलार माँ का चीख चीख रो रहा...
घर मे एक आँसुओं का चक्रवात सा दिखा...
सब अभी था पास मेरे, क्यूँ नहीं समझ सका...
माँ हो बदहवास अब, इधर उधर है घूमती...
याद की निशानियों को, बार बार चूमती...
जिनको तब समझ रहा था, प्यार से विहीन मैं...
वो भी आज आँसुओं भरी फ़िज़ा मे लीन है...
ख़ुदकुशी से मैं नही, कई थे और मर गये...
आँख से वो बह रहे अंगार मुझको खल गये...
सोचता हूँ अब यही क्यूँ कर ली मैने ख़ुदकुशी...
कोशिशों की अब भी आख़िरी तो साँस थी बची...
31 टिप्पणियाँ:
कोशिशों की अब भी आख़िरी तो साँस थी बची...
कोई मज़े मज़े में जान देने का फैसला नहीं करता ..जब सारे रास्ते बंद नज़र आते है तब होती है ये इच्छा वो बस एक पल का आवेग होता है ,अगर गुज़र जाए तो बच गए वरना बहाकर मौत तक ले जाता है
Sonal ji...bas yahi kehna chahta hun ki kabhi exam me fail ho jaana suicide ka karan nahi ho sakta...haan kuch communication gap ho jata jai aur bachche samajhte hain ki maa baap unse pyaar nahi karte...samvaadheenta nahi honi chahiye...
Kayi baar aatmhatya, asal me hatya hoti hai..kisee ko ek teele ke nok par le jana,jahan se patan ho,yah gunah nahi?
@kshama ji ..ye students ke liye likhi hai...unme kuch nasamjhi hi hoti hai...
कोशिशों की अब भी आखरी सास तो थी बची मन के अन्दर दो विचारों की लडाई जो थी मची क्षण भर के लिये नकारात्मक पहलू जीत गया सकारात्मकता की हुई हार पर आपने बता दिया आखरी साँस तक हारना नही मेरे यार और आपकी अभिव्यक्ति तो रहती ही है जोरदार मार्मिक रचना।
आपने निशब्द कर दिया | फिर भी आदत से बाज ना आते हुए यही कहूँगा की ....
कठिनाईयों से हमें कुछ तो सिखाना होगा ,
शायद ये अपनी मंजिल के रास्ते ही हों |
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत सटीक रचना है दिलीप ...आज नयी प्र्र्धि बहुत जल्दी हताश हो कर ऐसे कदम उठा लेती है...उनको एक सन्देश है...दिल की गहराई तक उतर गयी ये रचना
जिंदगी से बड़ी कोई हार या जीत नहीं हो सकती ...जिंदगी के हर पक्ष को जीना ही जिंदगी का सबब है ।
एक संबल देती कविता !!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। आभार|
ख़ुदकुशी से मैं नही, कई थे और मर गये...
आँख से वो बह रहे अंगार मुझको खल गये...
सोचता हूँ अब यही क्यूँ कर ली मैने ख़ुदकुशी...
कोशिशों की अब भी आख़िरी तो साँस थी बची...
-गजब लिखते हो!! तारीफ के शब्द खत्म हो रहे हैं. एक दो बार हल्का भी तो लिखो. :)
जीवन तो कठिन है ही ...लेकिन मृत्यु को अंगीकार करने के लिए भी बहुत हिम्मत की आवश्यकता होती है....सोचने वाली बात है बच्चों के मन का भय, मृत्यु के भय से बड़ा क्यों हो जाता है....आख़िर माँ-बाप ऐसा क्या कर देते हैं कि उनका खौफ़ बच्चों को इस कगार तक ले आता है...
मृत्यु पश्चात जो अपनत्व दिखता है वह पहले क्यूँ नहीं देख पाते हैं बच्चे... अगर देख लें तो यह परिस्थिति ही न आये....
बहुत ही मार्मिक कविता...
आज के युग के युवा कवि को मेरे सलाम।
ख़ुदकुशी से मैं नहीं कई और मर गए ...
मार्मिक रचना ... ...!!
भावनाएँ गहरी है
कुछ तड़प के बाद मुझको मिल गया जहाँ नया...
हार जैसे खो चुकी थी जीत का समा दिखा...
अब नही थे आँधियों के तीर मुझको गड़ रहे...
अब नही थे स्वप्न आँसुओं से भीग सड़ रहे...
जोरदार मार्मिक रचना,दिलीप जी
क्या दोस्त...क्या गज़ब का लिखा है आपने .. :)
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
जिस दिन न्यूज़ में ये खबर पढ़ी थी ..दिल मेरा ही क्या सभी का रोया होगा ... आज उस जख्म को फिर ताज़ा कर दिया आपने ...
जिंदगी के दर्द की मार्मिक अभिव्यक्ति... मन भारी हो गया।
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रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
सिर्फ़ इतना ही कह सकती हूँ……………हमेशा की तरह मार्मिक और सोचने को मजबूर करती रचना।
हमें याद रखना चाहिए कि अगर एक रास्ता बन्द होता है तो दर्जनों रास्ते खुलते हैं बस जरूरत होती है धैर्य से मेहनत करते रहने की
हताश लोगों को एक सन्देश देती हुई मर्मस्पर्शी रचना....काश माँ बाप और बच्चो मे ऐसा नाता बन सके कि ऐसी नौबत ही न आए...
Dil ko cheer gaee aapki najm. Khudkushi karane wala akela nahee marata.
आईये जानें .... मन क्या है!
आचार्य जी
अच्छी कविता है भाई.... साधुवाद....
बहुत खूब!
नीलम चतुर्वेदी की कहानी 'एक घटना का इंतज़ार ' की एक पंक्ति :
मौत में मुक्ति ढूँढना जीवन का सबसे घटिया इस्तेमाल है.
आपकी रचना सुन्दर है.
ख़ुदकुशी से मैं नही, कई थे और मर गये...
आँख से वो बह रहे अंगार मुझको खल गये...
सोचता हूँ अब यही क्यूँ कर ली मैने ख़ुदकुशी...
कोशिशों की अब भी आख़िरी तो साँस थी बची...laajabaab,bahut hi sundar rachna.
kuchh dino se padh rahi hun aap ko. bahut achchha aur sarthak likh rahe hain aap.
Lucknow nivasi hone se aur bhi achchha lagata hai aap ko padh kar
मेरे ख्याल से खुदकुशी एक क्षणिक फैसला होता है उसके बाद कुछ नही ।बच गये तो कुछ सोच पाओगे नही तो सब बन्धनों से मुक्ति............
bahut khub likhawat hai aapki....
bahut sikhne milta hai aapki rachnaon se..
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