आज फिर माँ को समर्पित एक रचना लिख रहा हूँ...सूर्यकांत जी इस बार ये कहने का प्रयास किया है कि माँ अगर साथ न भी हो फिर भी कहाँ कहाँ है माँ...अपनी माँ, आपको और अर्चना जी को समर्पित है ये रचना....
चला जो मुश्किल राह साथ मे चलती सी मिल जाती अम्मा...
दुख का कभी बवंडर आए आगे खुद बढ़ जाती अम्मा...
यादों का ये भरा पिटारा जब धीरे से चुक जाता है...
कुछ बासी तो कुछ कुछ ताजी यादों सी बन जाती अम्मा...
बहुत ज़ोर की भूख लगे पर बस इक रोटी का टुकड़ा हो...
किसी पिघलते मक्खन जैसी रोटी मे घुल जाती अम्मा...
बड़े घराने ब्याही बेटी फिर भी जब मिलने आती है...
आँचल के कोने मे दुबका मुड़ा नोट बन जाती अम्मा...
जब आँगन सूना सूना हो, परदेसी अपने हो जायें...
दरवाज़े पे टिमटिम करते दीपों सी जल जाती अम्मा...
कभी कभी जब छुटकी मेरी बड़ी बड़ी बातें करती है...
नन्हे से उगते दातों मे तुतलाती मिल जाती अम्मा...
कभी मुश्किलें आते आते सहमी सहमी टल जाती है...
कभी अंगूठी ताबीजों मे छिपी हुई दिख जाती अम्मा...
तपती जलती धरती पर जब अम्बर दो बूंदे बरसाए...
आँगन के कोने मे गुपचुप तुलसी सी उग जाती अम्मा....
दुख का कभी बवंडर आए आगे खुद बढ़ जाती अम्मा...
यादों का ये भरा पिटारा जब धीरे से चुक जाता है...
कुछ बासी तो कुछ कुछ ताजी यादों सी बन जाती अम्मा...
बहुत ज़ोर की भूख लगे पर बस इक रोटी का टुकड़ा हो...
किसी पिघलते मक्खन जैसी रोटी मे घुल जाती अम्मा...
बड़े घराने ब्याही बेटी फिर भी जब मिलने आती है...
आँचल के कोने मे दुबका मुड़ा नोट बन जाती अम्मा...
जब आँगन सूना सूना हो, परदेसी अपने हो जायें...
दरवाज़े पे टिमटिम करते दीपों सी जल जाती अम्मा...
कभी कभी जब छुटकी मेरी बड़ी बड़ी बातें करती है...
नन्हे से उगते दातों मे तुतलाती मिल जाती अम्मा...
कभी मुश्किलें आते आते सहमी सहमी टल जाती है...
कभी अंगूठी ताबीजों मे छिपी हुई दिख जाती अम्मा...
तपती जलती धरती पर जब अम्बर दो बूंदे बरसाए...
आँगन के कोने मे गुपचुप तुलसी सी उग जाती अम्मा....
30 टिप्पणियाँ:
soch raha tha ki fav sher ko yahaan likhun.. par dheere dheere poori ghazal hi copy pest ho gayi.. :) incredible...is matru prem ke aatge nat hun
बहुत ज़ोर की भूख लगे पर बस इक रोटी का टुकड़ा हो...
किसी पिघलते मक्खन जैसी रोटी मे घुल जाती अम्मा...
कितना कुछ ... अपरिमित....
आपकी बात ही अलग सी है
bhut khub jnab........
"माँ....."
वन्दे मातरम्....
कुंवर जी,
बहुत सुन्दर .....एक एक रचना दिल से निकलती है....और एक नयी अनुभूति देती है..शुभकामनायें
"बहुत सुन्दर ..माँ के बारे में जितना लिखे उतना कम है हकीकत में माँ सभी के लिये पाठशाला है.....बेहतरीन"
बहुत ज़ोर की भूख लगे पर बस इक रोटी का टुकड़ा हो...
किसी पिघलते मक्खन जैसी रोटी मे घुल जाती अम्मा...
बड़े घराने ब्याही बेटी फिर भी जब मिलने आती है...
आँचल के कोने मे दुबका मुड़ा नोट बन जाती अम्मा...
Waah Dilip ji waah,बहुत सुन्दर !!
bahut sundar gazal he
dhanyawad ise padwane ke liye
वन्दे मातरम् |
और कह भी क्या सकते है हम ............................माँ होती ही ऐसी है !!
इस बार तो ,,,,क्या कहूँ ? शब्द नहीं है ...एक-एक शब्द ,एक-एक पंक्ति ...तराशी हुई है ...अम्मा के साथ-साथ बहुत कुछ है इसमे ...आपकी यह रचना ...'एक अनमोल रत्न'
बहुत बहुत धन्यवाद भाई दिलीप! हमे भी लगता है वे मा ही हैं जो हमे बचाती आ रही है। माँ तो सन्ग सन्ग चलती है।
बहुत सुंदर भाईजी .....
माँ चेतन प्राणियो को ईश्वर का अनमोल उपहार विशेषकर मानव को...
यार दिलीप! तुम्हारे पास तो शब्दों के ख़ज़ाने छिपे हैं. हम ठहरे फकीर..कहाँ से लाएँ इतने शब्द जो तुम्हारी अभिव्यक्ति को match कर सकें... बस क्षमा चाहते हैं.
bahut abhaar..maan par jab bhi likhta hun..kalam ruk nahi paati..jabardasti rokta hun....
बहुत ही सुन्दर रचना है, 'ताजी सी यादों सी' कि जगह 'ताज़ी यादों सी' हो तो शायद ज्यादा सुन्दर लगेगा!
nilesh ji badlaav kar diya hai...abhaar
बड़े घराने ब्याही बेटी फिर भी जब मिलने आती है...
आँचल के कोने मे दुबका मुड़ा नोट बन जाती अम्मा...
once again Emotional atyachaar.. :)
वाह बहुत सुन्दर रचना है! शानदार और लाजवाब प्रस्तुती!
बहुत ही श्रेष्ठ रचना, बधाई।
सुन्दर है।
पूरी रचना पढ़कर अपनी अम्मा याद आ गयी ...मेरे पापा की माँ ... जब ससुराल से जाती थी एक नोट मुट्ठी में बाँध कर लाती थी और धीरे से मेरी मुट्ठी में सरका देती थी ...और मै उस नोट को संभाल कर रख लेती थी ,...उस नोट में अम्मा का प्यार जो छुपा होता था .... माँ , दादी , नानी सब ऐसी ही होती हैं ,,,, GR8 ji GR8 ...
....बेहतरीन !!!
bahut sundar rachnaa ...maa mein to saara sansaar hai
maa ko naman karti sundar rachna.
तपती जलती धरती पर जब अम्बर दो बूंदे बरसाए
आँगन के कोने मे गुपचुप तुलसी सी उग जाती अम्मा
......................बहुत सुन्दर रचना..बधाई!
तपती जलती धरती पर जब अम्बर दो बूंदे बरसाए...
आँगन के कोने मे गुपचुप तुलसी सी उग जाती अम्मा....
ईश्वर का ही एक रूप है माँ................सुबह से ही माँ की याद आ रही थी आपकी रचना पढ़ कर तो आँखे ही भीग गयी...........
बहुत ज़ोर की भूख लगे पर बस इक रोटी का टुकड़ा हो...
किसी पिघलते मक्खन जैसी रोटी मे घुल जाती अम्मा...
महान कवी की सारी निशानियां मौजूद हैं आपमें। बस एक सही छलांग का इंतजार कर रहे होंगे। भगवान करे जल्द ही मनोकामना पूरी हो जाए।
iski taareef nahi hogi bhai..........aankhon ki nami sweekaro aap
ड़े घराने ब्याही बेटी फिर भी जब मिलने आती है...
आँचल के कोने मे दुबका मुड़ा नोट बन जाती अम्मा...
कभी मुश्किलें आते आते सहमी सहमी टल जाती है...
कभी अंगूठी ताबीजों मे छिपी हुई दिख जाती अम्मा...
तपती जलती धरती पर जब अम्बर दो बूंदे बरसाए...
आँगन के कोने मे गुपचुप तुलसी सी उग जाती अम्मा....
kis pankti ki tareef karu or kis ki nahi , sabhi bahut sunder or bhavpurn hai, sach maa ke pairo main sawarg hai, sab kuch vapas mil sakta hai par maa nahi,
merey pass shabad nahi hai
बहुत सुन्दर! अत्यन्त परिपक्व रचना है। मँजे हुए रचनाकारों में इज़्ज़त से नाम शामिल करवा लिया है। देखिए ईर्ष्या न हो लोगों को - और हो तो होने दें - आप तो और अच्छा लिखते रहिए जनाब!
बहुत अच्छे!
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