सूरज मेरे घर की ज़रा पुताई कर दो...
बदले में मुझसे मेरी नजमें ले लेना...
आगे वाले कमरे में सुबह की लाली...
पीछे थोड़ा शाम का सिंदूरीपन रख दो...
कोने वाले कमरे को यूँही रहने दो...
रात बुला कर मैं उससे ही रंगवा लूँगा....
उस कमरे में बैठ के ही नजमें लिखनी है...
वहाँ उजाला होगा तो लिखूंगा कैसे....
वैसे भी दिन रात वहाँ बारिश होती है...
उस बारिश में रंग कहाँ से टिक पाएँगे...
सूरज मेरे घर की ज़रा पुताई कर दो...
7 टिप्पणियाँ:
आज की ब्लॉग बुलेटिन समाजवाद और कांग्रेस के बीच झूलता हमारा जनतंत्र... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Waaah....bahut khoob
बहुत सुंदर!
सुबह की लाली , शाम का सिंदूरीपन ...
सूरज का आशीष मिल ही गया !
खूबसूरत अभिव्यक्ति !
क्या कहने
वाह निहायत खुबसूरत।
अहा, बहुत सुन्दर
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