रात पूनम की है, नन्हा नहीं समझता ये...
रात, बेबस निगाह लेके है वो घूर रहा...
वो सोचता है वो सिक्का कभी गिरेगा कहीं...
अपने आका की पिटाई से वो बच जाएगा...
वो मासूम सा नन्हा सा भिखारी देखो...
हाथ फैलाए, दौड़ता है सड़क पर तन्हा...
रात, बेबस निगाह लेके है वो घूर रहा...
वो सोचता है वो सिक्का कभी गिरेगा कहीं...
अपने आका की पिटाई से वो बच जाएगा...
वो मासूम सा नन्हा सा भिखारी देखो...
हाथ फैलाए, दौड़ता है सड़क पर तन्हा...
5 टिप्पणियाँ:
एक पहलू चाँद, एक पहलू रोटियाँ
वाह! जे बात | क्या लिखा आपने बहुत सुन्दर | पढ़कर प्रसन्नता हुई | आभार
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Tamasha-E-Zindagi
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आपने बहुत सुन्दर...
dil ko kuredti si panktiya...
kunwar ji,
उफ़्फ़ यह बेबसी और यह हालात न जाने कभी खत्म होंगे भी या नहीं...
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