स्टेशन
पर खड़ा था...
ट्रेन लेट थी...
भूख सी लगी...
सामने अख़बार मे लिपटी...
आलू पूड़ी बेचने वाला दिखा...
उससे खरीदा और खा ही रहा था...
कि एक सात-आठ साल का लड़का...
खड़ा हो गया सामने...
घूरने लगा...
मैने मुँह मोड़ा, पूडिया निपटाई...
और जैसे ही अख़बार फेंकने वाला हुआ...
उसने वो अख़बार माँग लिया...
मैने पूछा क्या करेगा...
पढ़ा लिखा है क्या...
बोला पढ़ा लिखा तो नहीं हूँ...
पर सुना है अख़बार में बड़ी चटपटी खबरें आती हैं...
ऊपर से वो आलू की सब्जी का मसाला भी ला गया है उसपे...
अख़बार
और चटपटा हो गया है...
मैने पूछा, 'तो'?
बोला,
'तो क्या दो काम हो जाएँगे...
स्टेशन
साफ भी रहेगा...
और ये अख़बार खाकर भूख भी मिट जाएगी...
साहब जीभ बड़ी चटोरी है मेरी...
इसीलिए
सब 'चटोरा' बुलाते हैं...
सूखा अख़बार खाया नहीं जाता मुझसे...
7 टिप्पणियाँ:
सच कहा, अख़बार को चटपटा बना देते हैं, सूखे जीवन में।
बोला, 'तो क्या दो काम हो जाएँगे...
स्टेशन साफ भी रहेगा...
और ये अख़बार खाकर भूख भी मिट जाएगी...
वाह !!! बेहतरीन रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
सूखा अख़बार खाया नहीं जाता मुझसे...
बेहद संवेदनशील रचना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
bahut accha
Zabardast...behetereen
Zabardast...behetereen
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