कोई कुछ बोल रहा था...
कोई कुछ सुन रहा था...
हवा सुन्न थी...
न कुछ बोल रही थी...
न सुन रही थी...
क्यूंकी
वही जानती थी शायद...
कि क्या होने वाला है...
कुछ बूट रौन्द्ते चले आए ज़मीं को...
इंसान नहीं बस वर्दी में कुछ कठपुतलियाँ थीं...
एक गोरे ने धागा खींचा...
गोलियाँ
चिल्ला पड़ी...
बच्चे बूढ़े औरत थोड़ा चीखे फिर...
खामोश हो गये...
उस बैसाखी ने कितने ही घरों को...
बैसाखियाँ थमा दी...
मैं वो कुआँ था जो हाथ फैला के वही पड़ा था...
कितने दौड़ कर मेरी बाहों में आए...
गोद में लुढ़क गये...
उस दिन सोचा शायद मुझमें जान होती...
इतनी जानें नहीं जाने देता...
तब उन भूरे मुलाज़िमों से गोलियाँ खाई थी...
आज गालियाँ खाते हैं...
हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ...
सच में क्या...
मुझसे तो उन लाशों का वो बोझ...
किसी ने आज़ाद नहीं किया...
मैं तो अब भी वहीं पड़ा हूँ...
बस एक तख़्ती लग गयी है...
उस हादसे के बारे में...
तख़्ती
न लगवाते..
बस एक वादा कर देते...
वैसे हादसे अब नहीं होंगे...
पर कहाँ...
भूरे ज़्यादा ज़ालिम निकले...
घर फूँकते हैं...
अरमान जलाते हैं...
ख्वाबों
को क़त्ल करते हैं...
मुस्तक़बिल धज्जी धज्जी कर देते हैं...
अब बस भी करो हमें फिर आज़ादी चाहिए...
असली वाली...
10 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (13-04-2013) के रंग बिरंगी खट्टी मीठी चर्चा-चर्चा मंच 1213
(मयंक का कोना) पर भी होगी!
बैशाखी और नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
मार्मिक चित्रण..बद्ध अवस्था..उबलता आक्रोश..
मार्मिक अभिव्यक्ति
बहुत ही मार्मिकता को दर्शाती हुई रचना ,समझ नहीं आता आह कहुं या वाह ,बेहतरीन चित्रण के लिए बधाई
''नवरात्र ''भाग 1
उस बैसाखी ने कितने ही घरों को...
बैसाखियाँ थमा दी...संवेदन-शील ..
आज की ब्लॉग बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ की यादें - ब्लॉग जगत के विवाद - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मार्मिक मगर सटीक चित्रण
बहुत बढ़िया संवेदनशील प्रस्तुति,आभार
Recent Post : अमन के लिए.
बहुत ही मार्मिक -बेहतरीन प्रस्तुति
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बहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
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