नमक भरी कुछ ओस मिली...

Author: दिलीप /


आसमान की सारी रंगत, आज पड़ी बेहोश मिली...
चाँद अधूरा, टूटे तारे, रात बड़ी खामोश मिली...

भरम मुझे था ये आईना मुझको सच दिखलाएगा...
अलग अलग नकली सी सूरत, दिखती सी हर रोज़ मिली...

कैसे जी लूँ भला बताओ, इन धड़कन के टुकड़ों पर...
कुछ साँसों का क़र्ज़ मिला और एक ज़िंदगी बोझ मिली...

मुझे सहारा देने खातिर, ग़म बाहें फैलाए है...
तन्हाई की इक अनचाही रोज़ मुझे आगोश मिली...

किसी को तारा, चाँद किसी को, किसी को है सूरज की चाह...
लगा सोचने खुद की चाहें, एक अधूरी खोज मिली....

बड़े सहारे की उम्मीदें, किए हुए था रूह से मैं...
बिखर गयी सारी उम्मीदें, वो भी जिस्म फ़रोश मिली...

दीवारों को शब भर मैने, शेर ज़रा से क्या बोले...
सुबह सुबह तकिये के ऊपर, नमक भरी कुछ ओस मिली...

23 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह....
बेहतरीन.....
हमेशा की तरह लाजवाब.

अनु

travel ufo ने कहा…

ati sunder rachna

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सन्नाट अभिव्यक्ति..

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

रचना सज्जित भावों से सुन्दर

अंतराल के बाद मिली

विजयादशमी की "बिलेटेड" बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत गज़ल

poonam ने कहा…

bahut khub

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति

इमरान अंसारी ने कहा…

वाह बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल।

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut achchhe...

ह‌िमानी ने कहा…

बड़े मीठे शब्दों में बयां ‌क‌िया है नमक भरी ओस का स्वाद

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

अलग अलग नकली सी सूरत, दिखती सी हर रोज़ मिली

meaningful ghazal !

Unknown ने कहा…

bahut umda... kamal ka likhte hain aap...

बेनामी ने कहा…

प्रिय ब्लॉगर मित्र,

हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम

पुनश्च:

1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।

[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

ओस में नमक होता तो नहीं पर मान लेते हैं जी :)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_20.html

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

पहले तो इतने क्लासिकल ब्लॉग के लिए बधाई...
दीवारों को शब भर मैने, शेर ज़रा से क्या बोले...
सुबह सुबह तकिये के ऊपर, नमक भरी कुछ ओस मिली...
बहुत अच्छी पंक्तियां....बड़ी प्यारी ग़ज़ल...
एक योजना है...
आप इस मेल पर सम्पर्क करें...
veena.rajshiv@gmail.com
वैसे काफी समय से अपडेट नहीं किया है...फॉलो कर रही हूं ताकि आगे भी पढ़ने को मिलें...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

गज़ब!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_5943.html

बेनामी ने कहा…

bahut bahut shandar....
excellent work...lov it

दीवारों को शब भर मैने, शेर ज़रा से क्या बोले...
सुबह सुबह तकिये के ऊपर, नमक भरी कुछ ओस मिली...

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

Dilip जी आज रचना पर टिप्पणी नहीं हरूँगा .केवल सभी ब्लॉग पाठको को निवेदन करूँगा की मेरी पोस्ट " निर्भय को श्रद्धांजलि "पड़कर अपनी अपनी राय जस्टिस वर्मा को भेजे , यह एक सार्थक एवं अमूल्य राय होगी :हम सलाम करते हैं निर्भय को -
मेरी पोस्ट :निर्भय को श्रद्धांजलि

Rohit Singh ने कहा…

काफी खुबूसूरत लाइने हैं ...भाई कैसे रात खामोश मिल गई तुम्हें...हमें तो कमबख्त खामोश मिलती है तो बतियाने लगती है पर कविता के रुप में नहीं ...हां नहीं तो..अब रात से भी झगड़ा करना पड़ेगा..निंदिया रानी से झगड़ा तो चल ही रहा है..

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन...

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