मौत तू भी बड़ा लंबा सफ़र तय करवाती है खुद तक पहुँचने को...
तुझ तक पहुँचने का रास्ता इतना खूबसूरत है तो तू कितनी खूबसूरत होगी...
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मेरे इश्क़ के कुछ टुकड़े अब भी तो किसी कोने मे होंगे...
किसी दराज मे , किताबों के बीच बैठे सुस्ता रहे होंगे...
धूल ने अब भी उनसे लिपट कर उन्हे महफूज रखा होगा...
शायद इस दीवाली पर तुम्हारी हथेलियाँ मुझ तक पहुँचे...
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कल जब खिड़की से देखा था...
तब तो नीले मैदान मे सर उठाए उछल रहे थे...
आज जाने किसने डांटा है...
मुँह लटकाए घूम रहे हैं...
रंग इतना उतर गया है की...
लगता है अभी रो ही देंगे...
हवाओं से कहो वही थोड़ा पुचकार दें...
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धूल उड़ी, आँखों तक पहुँची, आँखें गीली कर गयी...
बड़े शर्म की बात है, आँखों का पानी ज़िंदा रखने के लिए, मिट्टी को अब इतनी मेहनत करनी पड़ती है....
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एक विषैले नैना तेरे, दूजा मुझको डन्स लेते हैं...
तड़प हृदय मर जाता है जब, नैन तुम्हारे हँस देते हैं...
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तूने भी कम्बख़्त बड़ा इंतज़ार करवाया...
देख न जब दिल सुसताने लगा, नब्ज़ की टिक टिक कम हो गयी...
जब ताक़त न रही की उठ कर तुझे गले लगाऊं,
तब जाकर तू आई है...
मौत तेरे इंतज़ार मे तो पूरी एक ज़िंदगी ही गुज़र गयी....
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ज़िंदगी के किसी एक छोर पे बेपरवाह सी...
मेरे आने के इंतज़ार मे गुम्सुम सी खड़ी...
पता है मुझे, एक दिन तू मुझे पा ही लेगी...
पर दिल मे तो अफ़सोस हमेशा रहेगा यही ...
तूने ज़िंदगी भर मेरा बेसब्र हो इंतज़ार किया...
...पर ए मौत ! मिलकर भी तुझे देख ना सका..
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मुझे मालूम है अक्सर मुझे तुम कोसती होगी...
कभी तन्हाई मे आँखों से आँसू पोंछती होगी...
मैं ज़िंदा हूँ अगर तो इसलिए कि है मुझे उम्मीद...
बहाना चाहे कोई हो, मुझी को सोचती होगी...
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कभी आदत बनी थी जो, वो अब बातें नही होती...
हो तुम भी, चाँद भी हो साथ, वो रातें नहीं होती...
मेरे अपनों ने भी उम्मीद सारी छोड़ दी अब तो...
की दिल मे दर्द होता है, मगर आँखें नही रोती...
11 टिप्पणियाँ:
तूने भी कम्बख़्त बड़ा इंतज़ार करवाया...
देख न जब दिल सुसताने लगा, नब्ज़ की टिक टिक कम हो गयी...
जब ताक़त न रही की उठ कर तुझे गले लगाऊं,
तब जाकर तू आई है...
मौत तेरे इंतज़ार मे तो पूरी एक ज़िंदगी ही गुज़र गयी....
Nihayat khoobsoorat! Pooree rachana!
जनाब कहाँ थे गायब इतने दिन से ?
क्या ये इतनी अच्छी क्षणिकाएं समेत रहे थे.
बहुत अच्छी लगी ये सारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक.
बधाई.
धूल उड़ी, आँखों तक पहुँची, आँखें गीली कर गयी...
बड़े शर्म की बात है, आँखों का पानी ज़िंदा रखने के लिए, मिट्टी को अब इतनी मेहनत करनी पड़ती है....
दिलीप जी पसंद आये आपके मुक्तक. जो उद्धृत किया है वह काफी भाया.
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक है ...फिर भी ..
तूने ज़िंदगी भर मेरा बेसब्र हो इंतज़ार किया...
...पर ए मौत ! मिलकर भी तुझे देख ना सका..
मौत से मिलकर उसे ना देखना ...कितनी खूबसुरती से बयान किया आपने मृत्यु के क्षणों को ..
कल जब खिड़की से देखा था...
तब तो नीले मैदान मे सर उठाए उछल रहे थे...
आज जाने किसने डांटा है...
मुँह लटकाए घूम रहे हैं...
रंग इतना उतर गया है की...
लगता है अभी रो ही देंगे...
हवाओं से कहो वही थोड़ा पुचकार दें...
मानसूनी रुत में बादलों के चढ़ते उतरते रंग ...!
अरे जनाब आज तो आप मेरे लिए "नजीर" से "अज्ञेय" बन गए.........अपने लिए नजीर वो जिसके पास आम लोगों वाली जबान हो और अज्ञेय वो जो विशिष्ट शैली में लिखे पर अपने पल्ले कुछ कम ही पड़े...
कल जब खिड़की से देखा था...
तब तो नीले मैदान मे सर उठाए उछल रहे थे...
आज जाने किसने डांटा है...
मुँह लटकाए घूम रहे हैं...
रंग इतना उतर गया है की...
लगता है अभी रो ही देंगे...
हवाओं से कहो वही थोड़ा पुचकार दें...
दिलीप जी एक अंतराल के बाद आपका भी पुनः स्वागत और आपकी सुन्दर रचनाओं का भी !
साडी खानिकाएं अच्छी लगीं ...तुम्हारे लेखन के अंदाज़ से कुछ अलग स लगा ...
सुंदर रचना । बधाई
'कुछ ऐसे ही' वो जब लिखते है मजाल 'ऐसे'
कुछ मुक्कमल न जाने कैसे लिखते होंगे!
तूने भी कम्बख़्त बड़ा इंतज़ार करवाया...
देख न जब दिल सुसताने लगा, नब्ज़ की टिक टिक कम हो गयी...
जब ताक़त न रही की उठ कर तुझे गले लगाऊं,
तब जाकर तू आई है...
मौत तेरे इंतज़ार मे तो पूरी एक ज़िंदगी ही गुज़र गयी...
its awaysome creation ,.
bahut hi sundar lekh hai aap ka ....
aapka lekh padh kar laga ki mere liye hi likha gaya hai ...
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