भला कैसे...

Author: दिलीप /


हम तोहमतें भेजें भी तो, भेजें भला कैसे...
हम बेवफा को बेवफा, लिख दें भला कैसे...

माना कि मेरा यार, अदाकार बड़ा है...
झूठा है चश्मे-तर, मगर देखें भला कैसे...

जिसको नहीं मालूम था तौर--वफ़ा कभी...
उसको ही बेवफा सनम, लिखें भला कैसे...

तवा--हुस्न तो मिला, वो आग मिली...
हम इश्क़ की ये रोटियाँ सेंकें भला कैसे...

जिन बुतो ने हमसे की हर वक़्त बेरूख़ी...
खुदा, कलम से उनको ही कह दें भला कैसे...

हमपे है ये इल्ज़ाम, जबां है ज़रा बुरी...
अब दायरे में बँध के भी, लिखें भला कैसे...

जिनकी किरायेदार बन है उम्र कट रही...
हम आशियाना ख्वाब का दे दे भला कैसे...

है एक नज़्म में ही खुदा, मय, सनम, नमी...
अब इसके सिवा ज़िंदगी लिखें भला कैसे...

10 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..

Prakash Jain ने कहा…

है एक नज़्म में ही खुदा, मय, सनम, नमी...
अब इसके सिवा ज़िंदगी लिखें भला कैसे...

Behtareen, bahut hi khoob:-)

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत खूबसुरत गजल दिलीप जी ! वाह !
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Sunil Kumar ने कहा…

हमपे है ये इल्ज़ाम, जबां है ज़रा बुरी...
अब दायरे में बँध के भी, लिखें भला कैसे...
बहुत सुंदर क्या बात हैं ........

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज की ब्लॉग बुलेटिन होली आई रे कन्हाई पर संभल कर मेरे भाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल...

अनु

वाणी गीत ने कहा…

प्रश्न है या अंतरात्मा की उथल पुथल !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

Pallavi saxena ने कहा…

है एक नज़्म में ही खुदा, मय, सनम, नमी...
अब इसके सिवा ज़िंदगी लिखें भला कैसे...दिल छू गयी यह पंक्तियाँ ...:)

इमरान अंसारी ने कहा…

उम्दा शेरों से सजी खुबसूरत ग़ज़ल।

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