आज भी गुज़रता हूँ कभी कभी, तुम्हारी यादों से...
आगे जाकर बड़ी संकरी और भूल भुलैय्या सी हो जाती हैं...
जाओ तो बाहर आना मुश्किल हो जाता है...
इसलिए समझदारी का धागा बाँध कर आता हूँ....
देखता हूँ वो गेट अभी भी वैसे ही बाहें पसारे खड़ा है...
मुझे देखता है तो इक धीमी सी आवाज़ करता है...
इंतेज़ार की ठंड मे हड्डियाँ जकड गयी हैं उसकी...
सीढ़ियाँ अभी भी वहीं लेटी हैं, अंतिम साँसें गिन रहीं है...
तुम थी तो तुम्हे गोद मे लिए आसमान छू आती थी...
एक दरवाजा भी है बूढ़ा सा, ऊन्घ्ता रहता है...
मुझे देख कर ज़रा सी आँख खोलता है...
मुझे अकेला देख कुछ बड़बड़ सी करता है...
मानो गाली दे रहा हो...
आगे खिड़कियों की फटकार, बर्तनों की खामोशी...
अलमारियों के सन्नाटे, जाने क्या क्या मिलेगा...
नहीं मिलेगा तो बस तुम्हारा साथ इसलिए...
आगे जाने की हिम्मत नहीं होती...
समझदारी की वो कमजोर सी डोर थामे...
संहाल के वापस चला आता हूँ अपने आज मे....
11 टिप्पणियाँ:
यादों की गलियाँ संकरीं भी...सूनी भी......
बहुत सुंदर दिलीप जी.
बहुत सुंदर!
आगे खिड़कियों की फटकार, बर्तनों की खामोशी...
अलमारियों के सन्नाटे, जाने क्या क्या मिलेगा...
नहीं मिलेगा तो बस तुम्हारा साथ इसलिए...
आगे जाने की हिम्मत नहीं होती...
समझदारी की डोर थामे आज में वापस आने में ही समझदारी है, क्योंकि यादें सहारा होती हैं जीने का जीवन नहीं... सुन्दर अभिव्यक्ति
कहीं भी चले जाओ ... लौट कर आना ही होता है अपने आज मे ... बहुत खूब दिलीप !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना
समझदारी की वो कमजोर सी डोर थामे...
संहाल के वापस चला आता हूँ अपने आज मे...
बहुत सुंदर भाव ...
शुभकामनायें
संभावनायें सिकुड़ने लगती हैं, गली सँकरी होने लगती है।
सीढ़ियाँ अभी भी वहीं लेटी हैं, अंतिम साँसें गिन रहीं है...
तुम थी तो तुम्हे गोद मे लिए आसमान छू आती थी...
Aah!
आगे खिड़कियों की फटकार, बर्तनों की खामोशी...
अलमारियों के सन्नाटे, जाने क्या क्या मिलेगा...
नहीं मिलेगा तो बस तुम्हारा साथ इसलिए...
आगे जाने की हिम्मत नहीं होती...
ati sundar
आगे खिड़कियों की फटकार, बर्तनों की खामोशी...
अलमारियों के सन्नाटे, जाने क्या क्या मिलेगा...
नहीं मिलेगा तो बस तुम्हारा साथ इसलिए...
आगे जाने की हिम्मत नहीं होती...
क्या बात है दिलीप जी, बहोत खूब । यादें...................
bahut khub....kya kahane...wah
बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
एक टिप्पणी भेजें