हम क्यूँ जागे रात भर, फिर क्या करोगे जान कर..

Author: दिलीप /

ख्वाब की ख़ुफ़िया पोलीस की धरपकड़ से भाग कर...
आज फिर एक रात है हमने गुजारी जाग कर...

आसमाँ से चाँद के टुकड़े उठाने हम गये...
और उतरे एक बोरी फिर तुम्हारी लाद कर...

ओस की बूँदें ज़रा खारी हुई, हम डर गये...
छिप गये झीनी सी चादर, हम समझ की तान कर...

ख्वाब से तो बच गये, लेकिन ख़यालो से कहाँ...
फिर से तुम आ ही गये, कहने लगे की बात कर....

तुमने पूछा क्या वजह है रतजगे की, बोले हम...
पहले अपनी लाल आँखों की वजह तो साफ कर...

ख्वाब कितने ही, तुम्हारी आँख नीचे जल गये...
हम क्यूँ जागे रात भर, फिर क्या करोगे जान कर...

5 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ख्वाब की ख़ुफ़िया पोलीस..

पहली बार सुना, वैसे तो लोग अपनी भूली प्रेमिका से मिलने जाते हैं।

sonal ने कहा…

मोहब्बत का ये रंग अलहदा लगा ...

Anupama Tripathi ने कहा…

ख्वाब से तो बच गये, लेकिन ख़यालो से कहाँ...
फिर से तुम आ ही गये, कहने लगे की बात कर..
गहन बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..!
शुभकामनायें

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुमने पूछा क्या वजह है रतजगे की, बोले हम...
पहले अपनी लाल आँखों की वजह तो साफ कर...
वाह

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह वाह...

आसमाँ से चाँद के टुकड़े उठाने हम गये...
और उतरे एक बोरी फिर तुम्हारी लाद कर...
बहुत बढ़िया दिलीप जी.

अनु

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