वो मुझसे पूछ रहा है, कहो ग़ज़ल क्या है...
बीज को क्या बताऊं मैं कि ये फसल क्या है...
सूद तन्हाइयों का इस कदर चढ़ा मुझ पर...
मैं भूल सा गया हूँ इश्क़ का असल क्या है....
तवायफो की गली मे भजन सुना तो लगा...
आज मैं जान गया खिल रहा कमल क्या है...
मैं कह गया नशा रगों में, दिल मे वहशत सी....
कोई था पूछ रहा आज की नसल क्या है...
थे काग़ज़ों पे बन रहे वो बड़े शेर मगर...
जो आया वक़्त तो पूछा तेरी पहल क्या है...
हवा उड़ा के लाई बादलों को दिल्ली से...
वो बाढ़ देके सोचते हैं इसका हल क्या है...
वो झोपड़ी, जहाँ रिश्तों के दिए जलते हों...
उसकी चौखट ही जानती है कि महल क्या है...
लिखते लिखते, किसी ख़्याल मे वो फिर आए...
पूछने हमसे लगे फिर नयी ग़ज़ल क्या है...
15 टिप्पणियाँ:
लिखते लिखते, किसी ख़्याल मे वो फिर आए...
पूछने हमसे लगे फिर नयी ग़ज़ल क्या है...
bahut sunder ghazal ...!
shubhkamnayen ...!!
kai din baad ..achchi gazal...
उम्दा गजल, हमारा भी बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ।
har sher jabardast
वो झोपड़ी जहां रिश्तों के दिये जलते हो.....
उसकी चौखट ही जानती है कि महल क्या है ....वाह वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने मज़ा आगया...
AAP BAHUT ACHCHHA LIKHTE HAIN...THODA BAHAR KA GYAN LEN TO CHAAR CHAAND LAG JAYENGE.
Neeraj sir samjha nahin main...shukriya doston..
बहुत खूब दिलीप ... ऐसे ही आते रहा करो बीच बीच मे ... जय हो !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ब्लॉग बुलेटिन की राय माने और इस मौसम में रखें खास ख्याल बच्चो का
वाह .. क्या बात है .. अलग से तेवर हैं इन शेरों में ... लाजवाब ..
बहुत खूब, अत्यन्त प्रभावी रचना..
Very nice ghazal with good flow and nice kaafiyas.
बहुत खुब
वो झोपड़ी, जहाँ रिश्तों के दिए जलते हों...
उसकी चौखट ही जानती है कि महल क्या है...
लिखते लिखते, किसी ख़्याल मे वो फिर आए...
पूछने हमसे लगे फिर नयी ग़ज़ल क्या है.
अनुपम भाव संयोजन से परिपूर्ण गहन भाव अभिव्यक्ति...
वो झोपड़ी, जहाँ रिश्तों के दिए जलते हों...
उसकी चौखट ही जानती है कि महल क्या है...
गहन भाव ..बहुत सुन्दर
दिलीप जी, पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ... बहुत सुन्दर गज़ल ... बेहतरीन !
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