ज़ेवर.....

Author: दिलीप /

तेरी यादों को जलाऊं, तो चमक उठती हैं...
तेरी यादें हैं ये, कुंदन सी बात है इनमे...
इनके ज़ेवर बना के मैने रख लिए हैं अभी...
किसी ग़ज़ल को चार चाँद लगाएँगे कभी...
 ----------------------------------

प्यार के मोती, बिछड़ने का नमक, रेत किस्मत की...
कितना कुछ रख दिया है आके, इसी चौखट पर...
लहर चुपके से आके साहिल पर इक दस्तक दे गयी...
-----------------------------------

खिड़कियाँ के पल्ले, पुचकार के बुलाओ....
तो पास नहीं आते, भागते हैं मुझसे...
आपास मे दिन भर लड़ते रहते हैं...
कभी चहक कर एक दूसरे के गले लग जाया करते थे...
तुम्हारे हथेली की छुवन भर से...
अब ये मानने को तैयार ही नहीं...
कि तुम यहाँ नहीं हो...
सच में, बहुत बुरी लत है तुम्हारी....
-----------------------------------------


6 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi ने कहा…

मन को छूती हुई....यादों की गहराईयों से निकली ,अद्भुत बिम्ब लिये बहुत ही गहन अभिव्यक्तियाँ ...!!
शुभकामनायें.

Himanshu Pandey ने कहा…

आपको पढ़ना एक गज़ब का अनुभव है।
फॉलो किया था, तभी कुछ दिनों की ब्लॉग-संसार से अनुपस्थिति घहर गयी...
अब जब पुनः आया हूँ तो ठहर गया हूँ यहीं..इस ब्लॉग पर!

आभार!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ऐसी भावुक लत तो आजन्म लगी रहे..

Prakash Jain ने कहा…

bahut khoob sir...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

आपको पढते जाने का मन करता है....
बस आप लिखते जायें.....

kunwarji's ने कहा…

बहुत बढ़िया...
कुँवर जी,

एक टिप्पणी भेजें