मेरे ख्वाबों से भरी कोई ऐसी रात आए...
तू जब भी बात करे फिर, तो मेरी बात आए...
चलो ढूँढे कोई दुनिया, जहाँ मोहब्बत में...
न उम्र, न कोई मज़हब, न कोई जात आए....
इश्क़ करने की इस आदत से परेशान हूँ मैं...
मेरी ज़िद है मेरे हिस्से में फिर से मात आए...
उसने राखी की डोर से उसे पहचाना था...
उस धमाके के बाद भाई के बस हाथ आए...
मैं कर रहा था इंतज़ार उसी राह खड़ा...
वो आए तो मगर, वो किसी के साथ आए...
खुशी के दिन में मेरे शेर सब झुलसते हैं...
करो जतन कि एक बार फिर से रात आए...
4 टिप्पणियाँ:
मोहब्बत की खूबसूरत दुनिया में मज़हब नाम की बीमारी घुस ही जाती है....
बहुत सुंदर लिखा...
उसने राखी की डोर से उसे पहचाना था...
उस धमाके के बाद भाई के बस हाथ आए...
उफ़ !!!!!!!!!!
भावमय करते शब्दों का संगम ... लाजवाब प्रस्तुति।
चलो ढूँढे कोई दुनिया, जहाँ मोहब्बत में...
न उम्र, न कोई मज़हब, न कोई जात आए....
हर शेर गज़ब का है....मुकम्मल ग़ज़ल।
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