एक कटोरी याद से तेरी, खाकर फिर दो ग़ज़ल 'करिश'...

Author: दिलीप /

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बहुत दिनों बाद आज फिर से आपके सामने आया हूँ... ज़िन्दगी जीना सीख रहा था...जब नहीं सीख पाया तो फिर से फक्कड़ी बन के जीने चला आया...उम्मीद है आपका प्यार ज़रूर मिलेगा....ग़ज़ल विधा में थोडा लिखने का प्रयास किया है....बताइयेगा कैसा लगा ये प्रयास....

तेरा गम जब भी चखता हूँ, कड़वा सा हो जाता हूँ.... 
धीरे से अम्मा कहता हूँ, मैं मीठा हो जाता हूँ...

अँधा एक पपीहा देखो, रोज़ तरसता सावन को...
  मर जायें वो उम्मीदें , रोज़ वहाँ रो आता हूँ...

ग़ज़ल बगल मे बाँध के अपने, तेरी राह गुज़रता हूँ...
 जाता हूँ बाजार, बेचने, रोज़ वहीं खो आता हूँ...

वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से... 
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ...

जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब... 
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ...

एक कटोरी याद से तेरी, खाकर फिर दो ग़ज़ल 'करिश'... 
और आँख का पानी पीकर, मैं भूखा सो जाता हूँ....

                                                                                     -दिलीप तिवारी 'करिश'

29 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

bahut khoob ..
kaafi acchi likhi aapane
itane acche se bayan kari apani feelings

जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब...
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ.

kya lines hain

संजय भास्‍कर ने कहा…

आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

अब तो अपनी चवन्नी भी चलना बंद हो गयी यार
दोस्तों पहले कोटा में ही किया पुरे देश में अपनी चवन्नी चलती थी क्या अपुन की हाँ अपुन की चवन्नी चलती थी ,चवन्नी मतलब कानूनी रिकोर्ड में चलती थी लेकिन कभी दुकानों पर नहीं चली , चवन्नी यानी शिला की जवानी और मुन्नी बदनाम हो गयी की तरह बहुत बहुत खास बात थी और चवन्नी को बहुत इम्पोर्टेंट माना जाता था इसीलियें कहा जाता था के अपनी तो चवन्नी चल रही हे ।
लेकिन दोस्तों सरकार को अपनी चवन्नी चलना रास नहीं आया और इस बेदर्द सरकार ने सरकार के कानून याने इंडियन कोइनेज एक्ट से चवन्नी नाम का शब्द ही हटा दिया ३० जून २०११ से अपनी तो क्या सभी की चवन्नी चलना बंद हो जाएगी और जनाब अब सरकरी आंकड़ों में कोई भी हिसाब चवन्नी से नहीं होगा चवन्नी जिसे सवाया भी कहते हें जो एक रूपये के साथ जुड़ने के बाद उस रूपये का वजन बढ़ा देती थी , दोस्तों हकीकत तो यह हे के अपनी तो चवन्नी ही क्या अठन्नी भी नहीं चल रही हे फिर इस अठन्नी को सरकार कानून में क्यूँ ढो रही हे जनता और खुद को क्यूँ धोखा दे रही हे समझ की बात नहीं हे खेर इस २०१० में नही अपनी चवन्नी बंद होने का फरमान जारी हुआ हे जिसकी क्रियान्विति नये साल ३०११ में ३० जून से होना हे इसलियें नये साल में पुरे आधा साल यानि जून तक तो अपुन की चवन्नी चलेगी ही इसलियें दोस्तों नया साल बहुत बहुत मुबारक हो ।
नये साल में मेरे दोस्तों मेरी भाईयों
मेरे बुजुर्गों सभी को इज्जत मिले
सभी को धन मिले ,दोलत मिले ,इज्जत मिले
खुदा आपको इतना ताकतवर बनाये
के लोगों के हर काम आपके जरिये हों
आपको शोहरत मिले
लम्बी उम्र मिले सह्तयाबी हो
सुकून मिले सभी ख्वाहिशें पूरी हो
जो चाहो वोह मिले
और आप हम सब मिलकर
किताबों में लिखे
मेरे भारत महान के कथन को
हकीकत में पूरा करें इसी दुआ और इसी उम्मीद के साथ
आप सभी को नया साल मुबारक हो ॥ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

maafi chahunga bhaayi lekin aapki behtrin rchna dekh kr mubaarkbad diye bger rhaa nhin jaata mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

कडुवासच ने कहा…

... bahut sundar ... shubhaa-shubh nav varsh - 2011 !!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

dilipji ,

bahut dino baad aap aaye

आप को नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
आने बाला बर्ष आप के जीवन में नयी उमंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप परिवार सहित स्वस्थ्य रहें एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे !

नवबर्ष की शुभ-कामनाओं सहित

संजय कुमार चौरसिया

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन गज़ल है, और सुनने की इच्छा है।

PAWAN VIJAY ने कहा…

जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब...
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ...

gazab ka likhte ho bhai

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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दिलीप जी,
देर से आये लेकिन दमदार ग़ज़ल लेकर आये.
तमाम शेरों [शेअर] की ताकत है इस अकेले गज(ल) में.
निहायत सरलता से आपने अपनी अनुभूतियों को जामा पहनाया है.
कमाल है आपकी पकड़ का...... शब्दों पर पकड़, सूक्ष्मतम अनुभूतियों पर पकड़.
वाह कहने के अलावा कुछ सूझता नहीं.
कृपया आते रहें. सप्ताह-दो सप्ताह में एक बार ही सही.
कम-स-कम वैचारिक पोस्टों पर 'आभार' और 'धन्यवाद' साधुवाद' के बहाने ही सही... दर्शन देते रहें.

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अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut pyari gazal likhi.itne dino baad aan hua. swagat hai.

nav varsh ki badhayi.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दिलीपजी ,

बहुत दिन गायब रहे ....करिश का क्या अर्थ होता है ....

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है ..हर अशआर गहन बात कहता हुआ ..
वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से...
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ..
यह बेहद पसंद आया ..

abhi ने कहा…

दिलीप भाई, स्वागत है...इतने दिनों बाद आयें और एक बेहतरीन गज़ल के साथ :)

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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आदरणीय संगीता स्वरूप जी,

मैं तो करिश का अर्थ अभी तो 'महावत' ले रहा हूँ.
गज पर सवार उसका स्वामी.
ग़ज़ल पर सवार उसका गज़लकार.
दोनों ही अपने अंकुश-अनुशासन से गज(ल) को साधते हैं.

करि मतलब हाथी.


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vandana gupta ने कहा…

बहुत दिन बाद आये मगर क्या खूब आये…………शानदार भाव संजोये है गज़ल मे।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

Renu goel ने कहा…

खारा पानी भी कभी कभी भला सा लगता है ... कुछ टीस देती ग़ज़ल भी इसी तरह भली सी लगी .. करिष का अर्थ मुझे भी नहीं पता था पर प्रतुल के बताने से इसका अर्थ ठीक लग रहा है ..
अच्छी ग़ज़ल की मुबारकबाद के साथ ही नव वर्ष की शुभकामनाएं ...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी ग़ज़ल है बधाई।
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर, भैया हम तो आप को बहुत दिनों से खोज रहे थे, आपकी कमी महसूस हो रही थी ब्लॉगजगत में, एक बार फिर से स्वागत है आपका, नव वर्ष की शुभकामना!

kunwarji's ने कहा…

दिलीप जी,नए वर्ष के साथ-साथ आपका भी एक बार फिर स्वागत है जी,

जबरदस्त ग़ज़ल के साथ वापसी करने पर बधाई,

नव वर्ष कि शुभकामनाये स्वीकार करे..

कुंवर जी,

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…


हां! काफ़ी दिनों बाद मुलाकात हुई
आशा है नव वर्ष में मिलते रहेंगे।

नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं

चुड़ैल से सामना-भुतहा रेस्ट हाउस और सन् 2010 की विदाई

Parul kanani ने कहा…

bahut bahut sundar!

rajani kant ने कहा…

एक अच्छी गज़ल के साथ वापसी पर स्वागत है.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

क्या खूब ! ग़ज़ल में भी कमाल हो ! वापसी की बधाई !

मंगलमय नववर्ष और सुख-समृद्धिमय जीवन के लिए आपको और आपके परिवार को अनेक शुभकामनायें !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल.... आभार..... नए साल की शुभकामनाएं.

Anupama Tripathi ने कहा…

वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से...
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ...


बहुत सुंदर लिखा है --
शुभकामनाएं -

neelam ने कहा…

अँधा एक पपीहा देखो, रोज़ तरसता सावन को...
न मर जायें वो उम्मीदें , रोज़ वहाँ रो आता हूँ...

दिल से निकली गहरी बात इधर भी दिल में उतर गयी है
..................उम्दा .
नव वर्ष आपके व् आपके पूरे परिवार को मंगलमय हो

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

wah!
khoobsurat gazal.
har sher kya kahne!

बेनामी ने कहा…

दिलीप,
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!
हमेशा की तरह आपकी पन्क्तियां पसंद आईं.. एक बात पूछनी है-
"करिश" माने क्या होता है??

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