इस कलम को प्राण जो तूने दिया उपकार तेरा,
भाव का विस्तार जो तूने दिया उपकार तेरा...
भाव की इस मृत मृदा को उंगलियों का स्पर्श देकर...
ये विविध आकार जो तूने दिया उपकार तेरा...
आज पर वरदान तुझसे एक माँ मैं चाहता हूँ...
मैं अकिंचन आज तुझसे स्वप्न अपने बाँटता हूँ...
न अमरता न तो यश ही, न विजय की चाह मुझको...
मृत्यु, अपयश, हार से निर्भीक होना चाहता हूँ...
तेरी भक्ति की ज़रा स्याही पिला मेरी कलम को...
ऋण चुकाने की धरा का शक्ति दे मेरी कलम को...
जब लिखूं मैं सत्य मेरी लेखनी न लड़खड़ाए...
तू अभय का ग्रास कोई अब खिला मेरी कलम को...
डूबता यह पूर्व का दिनकर पकड़ कर खींच लाए...
मूर्छित होते हुए मन को छुए और सींच जाए...
दो मुझे वरदान माँ जब साँस भी उखड़े कलम की...
लेखनी उसकी चले यूँ यम को भी जो जीत जाए...
आज अपनी लेखनी माँ मैं तुझे करता समर्पित...
ज्योत धीमी ही सही पर भाव से रखना अखंडित...
चाह है परिवर्तनों की, क्रांति की, फिर शांति की...
फिर तुम्हारी राह मे ये प्राण कर दूँगा विसर्जित....
34 टिप्पणियाँ:
चित्र से सरस्वती शिशु मंदिर याद आ गया ..भावपूर्ण रचना
दो मुझे वरदान माँ जब साँस भी उखड़े कलम की...
लेखनी उसकी चले यूँ यम को भी जो जीत जाए...
बेहद खूबसूरत भावो के साथ नमन्।
बड़ी ही भावमयी, सुन्दर रचना।
बचपन में हमारे syllabus में एक कविता थी, 'कुछ और भी दूँ', लगता है आपने भी वो पदी है, पर उसको कुछ उल्टा कर दिया है, और आपका अंदाज़ तो है हो ...
न अमरता न तो यश ही, न विजय की चाह मुझको...
मृत्यु, अपयश, हार से निर्भीक होना चाहता हूँ...
माँ भारती के चरणों में बहुत सुन्दर रचना.. आपके उत्कृष्ट चिंतन एवं लेखन को प्रणाम.
दिलीप भाई, इसमें आपकी लेखनी अपने पूरे शबाब पर है...ओज से भरपूर, तेज से प्रखर! मानों मांगने से पहले ही माँ ने आपकी झोली भर दी हो! वाह!!
सुन्दर कविता.....
बहुत सुंदर-
आशीष और शुभकामनाएं
जगद् गुरू माँ सरस्वती को नमन!
--
गुरू साक्षात् पारब्रह्म तस्मैं श्री गुरवे नमः!
Bahut sundar aura bhaavapoorna rachanaa.hardika shubhkamnayen.
बहुत सुन्दर प्रार्थना ....
माँग लिया मैने भी ......
बहुत खूब!
क्या आप ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
प्रिय बंधु दिलीप जी
सस्नेहाभिवादन !
दो मुझे वरदान मां … बहुत सुंदर और भावपूर्ण गेय रचना है । आपने छंद और लय का साधिकार निर्वहन किया है , बधाई !
एक एक शब्द आपकी आस्तिक प्रवृत्ति , राष्ट्र भक्ति और संकल्पबद्ध इच्छाशक्ति का परिचायक है ।
काव्य में जब इन संयोगों का समागम होता है तो ऐसी ही श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन होता है ।
उत्तरोतर प्रगति पल्लवन हेतु पूरे मन से आपको बधाई और शुभकामनाएं हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रशंसनीय ।
प्रशंसनीय ।
बेहतरीन कविता................
fir kamaal kiya..
अर्चना चाव जी से आपके ब्लॉग का पता चला...
बहुत ही प्रभावी और सच्ची रचना लगी ....
bahut sundar1
bahut sunder
दिलीप जी रचना पढ़ ली.
"मृत्यु, अपयश, हार से निर्भीक होना चाहता हूँ.."
कमाल की तमन्ना है आपकी.
----------------------------------
मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
आज अपनी लेखनी माँ मैं तुझे करता समर्पित...
ज्योत धीमी ही सही पर भाव से रखना अखंडित...
चाह है परिवर्तनों की, क्रांति की, फिर शांति की...
फिर तुम्हारी राह मे ये प्राण कर दूँगा विसर्जित...
bahut hi sundar samarpit bhaav
जब लिखूं मैं सत्य मेरी लेखनी न लड़खड़ाए...
तू अभय का ग्रास कोई अब खिला मेरी कलम को...
क्या बात है ... कई दिन ब्लॉग जगत से दूर रहा ... इसलिए पता ही नहीं चला आपकी वापसी का ... अच्छा लग रहा है फिर से आपकी रचनाओं को पढ़ पा रहा हूँ ...
जन्मदिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर!
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम ॥
बहुत अच्छी रचना है .......
भारत माता की जय .........
बधाई हो ....
http://nithallekimazlis.blogspot.com/
wah. bahut achcha.
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
kahan chale gaye bhaiya ?????achhi kawitayein padhe zamana beet gaya...
bahut bahut dhanaywad pahle to mere blog ko follow karne k liye
umeed karta hu aapaki tippani se mujhe kaafi kuch sikhane ko milega
kaafi acchi kavita hain
har panktiyo main bhav hain...
http://seemywords-chirag.blogspot.com/
dilip ji nav varsh haardik shubhkaamnaaye swikaar kare.....
aapke bina blog jagat suna-suna sa lagta hai....
naye varsh me nayi shuruaat kar hi dijiyega...
kunwar ji,
एक टिप्पणी भेजें