अधूरी इक कहानी
हूँ, मुक़म्मल हो
ही जाऊँगा...
अभी इक घास
का तिनका हूँ,
जंगल हो ही
जाऊँगा...
तू यूँ लिपटी
रही मुझसे, जो
नागिन की तरह
जानां...
यकीं मुझको, ज़हर तेरे
से, संदल हो
ही जाऊँगा...
सदाएं हैं वफ़ा
की लब पे,
दिल में बेवफ़ाई
है...
इबादत तेरी ऐसी
है, तो मंदर
हो ही जाऊँगा...
तेरी वो खुरदुरी
बातें, औ मेरे
घिस रहे अरमां...
चुभन अपने ज़हन
की देख, खंज़र
हो ही जाऊँगा...
बड़े दिन हो
गये इस आँख
से आँसू नहीं
टपका...
है काग़ज़ कह रहा
मुझसे, मैं बंज़र
हो ही जाऊँगा...
ये नज़्मी मछलियाँ, आँखों
के मोती, और
खारापन...
जमा करते हुए
सब कुछ, समंदर
हो ही जाऊँगा...
7 टिप्पणियाँ:
aaah. kya baat kahi.
bahut khoob
एक तत्व, बढ़ता जाता है, अब अनन्त में..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..
Waah! Adbhut....Bahut khoob Sir:-)
बस एक ही शब्द गज़ब :)
संपादक जी निवेदन है कि इस ग़ज़ल को ब्लॉग मेँ प्रकाशित करने की कृपा करेँ।
जो मेरे
सामने
नहीँ होता।
वो सच मेँ
खुदा
नहीँ होता॥
हम दवा
खा रहे हैँ
सदियोँ से।
पर हमेँ
फायदा
नहीँ होता॥
वो पत्ता
बहता है
इक दरिया मेँ।
जो शाख से
जुड़ा
नहीँ होता॥
गम को
ग़ज़ल मेँ
ढाल के देखो।
दर्द का
हल मैकदा
नहीँ होता॥
मनीस पाण्डेय
मल्लीताल, नैनीताल
सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई .. हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
तेरी वो खुरदुरी बातें, औ मेरे घिस रहे अरमां...
चुभन अपने ज़हन की देख, खंज़र हो ही जाऊँगा.....
as usual amazing....
एक टिप्पणी भेजें