और कहाँ कुछ माँगा था...

Author: दिलीप /


सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...जल्दी ही आप सभी को पढ़ भी पाऊँगा...
जीने की कुछ उम्मीदें दो, और कहाँ कुछ माँगा था...
थोड़ी सी अपनी साँसें दो, और कहाँ कुछ माँगा था...

गंगा जमुना छुपी रहें पर, लब ये चौड़े हो जाए...
संगम सी रौनक हो जाए और कहाँ कुछ माँगा था...

उधर गली मे ताज़ा ताज़ा, किसी ने इज़्ज़त नोची है...
पगली ने रोटी माँगी थी, और कहाँ कुछ माँगा था...

बूढ़ी थी वो नीम की डाली, लटका वो और टूट गयी...
बोझ ज़रा सा कम हो जाए, और कहाँ कुछ माँगा था...

मुन्ना अपना अफ़सर है अब, कहाँ गाँव मे आएगा...
बच्चा थोड़ा पढ़ लिख जाए, और कहाँ कुछ माँगा था...

डूबे घर की छत पर बैठा, हरिया है ये सोच रहा...
सावन थोड़ा जल्दी आए, और कहाँ कुछ माँगा था...

दरवाजे पर देखो कबसे, मौत हमारे खड़ी हुयी...
थोड़ी सांसें ही कम आयें और कहाँ कुछ माँगा था....
 
मैं रोऊँ तो तू हँसती है, हुई तसल्ली आज 'करिश'...
तेरी ही खुशियाँ माँगी थी, और कहाँ कुछ माँगा था...

                                                     - करिश

13 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सुंदर गजल पढवाने के लिए आभार

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति -
बधाई एवं नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबका जीवन सुखमय कर दो,
और कहाँ कुछ माँगा था।

बेनामी ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति

निर्मला कपिला ने कहा…

उधर गली मे ताज़ा ताज़ा, किसी ने इज़्ज़त नोची है...
पगली ने रोटी माँगी थी, और कहाँ कुछ माँगा था...

बूढ़ी थी वो नीम की डाली, लटका वो और टूट गयी...
बोझ ज़रा सा कम हो जाए, और कहाँ कुछ माँगा था...
पूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर ये दोनो शेर दिल को छू गये। नया साल मुबारक।

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन!

vandana gupta ने कहा…

आपको भी नये वर्ष में शुभकामनायें।

Archana Chaoji ने कहा…

तुम मुझको बस अपना गम दो,
और कहाँ कुछ माँगा था?

kunwarji's ने कहा…

hamaare jaise to in khubsurat shabdo ki prshansha karte huye bhi ghabraate hai.....

jitni khubsurati se inhe prastut kiya gya hai ham utni khubsurati se inki prshansha kar hi nahi sakte....
fir bhi WAAH kehte hai ji...

kunwar ji,

बेनामी ने कहा…

bahut khoob sir....
बूढ़ी थी वो नीम की डाली, लटका वो और टूट गयी...
बोझ ज़रा सा कम हो जाए, और कहाँ कुछ माँगा था...

this lines are superb...
check out my blog also

Priti Krishna ने कहा…

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्‍व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्‍वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !

sanjay mishra ने कहा…

ummid ki kiran jagati
ayachee.blogspot.com

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है....
और कहां कुछ मांगा था.....

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