कायर हैं हम, वीर नहीं...
शत्रु के क्रूर प्रहारों को...
माँ पे होते सब वारों को...
इस झुकी मेरु पे सहते हैं...
फिर हो गर्वित हम कहते हैं...
'भारत संतति है धीर बड़ी'
अरे कायर हैं हम, वीर नहीं...
बस शत्रु पनपते जाते हैं...
अभिमन्यु सब घबराते हैं...
अब विदुर अर्ध विक्षिप्त हुए...
और कृष्ण रास मे लिप्त हुए...
है द्रुपद सुता बिन चीर खड़ी...
अरे कायर हैं हम, वीर नहीं...
हम लुटा अस्मिता चुप बैठे...
ये अंधकार हो घुप ऐन्ठे...
मस्तक यूँही कट जाता है...
पर क्रोध कभी न आता है...
न नयन बहाते नीर कभी...
अरे कायर हैं हम, वीर नहीं...
सब बाल हान्थ है लिए अस्त्र...
न अन्न बचा न बचे वस्त्र...
हर दिशा मृत्यु है नाच रही...
न हृदय मे कोई आँच बची...
ममता दिखती है पीर मई...
अरे कायर हैं हम, वीर नहीं...
घर भीतर घुस अरि लूट गये...
हम भाँति नपुंसक खड़े रहे...
बुद्धि अपनी बौराई सी...
भारत माता घबराई सी...
है मृत्यु सरोवर तीर खड़ी...
अरे कायर हैं हम, वीर नहीं...
4 टिप्पणियाँ:
Dhanyawad Sanjay ji..
सही ही कहा!!
bahut bahu shukiya...
ye desh hai ver jawano ka ,albelo ka mastano ka is desh ka yaro kya kehna...
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