दिल की टीस...

Author: दिलीप /


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मेरे हालात तुझसे दूर कैसे हैं, मैं क्या बोलूं...
मैं खुद्दारी को आँसू से भला तोलूं तो क्यूँ तोलूं....
बहुत मुश्किल से दिल मे पीर का दरिया सम्हाले हूँ...
समझदारी के उँचे बाँध ये खोलूं तो क्यूँ खोलूं...

क्या जानो तुम बड़ी मुश्किल से, यादों को भुलाया है...
खटोले सच के सब टूटे, यूँ ख्वाबों को झुलाया है...
ये मेरे प्यार का बच्चा, बिलखता था , सिसकता था...
इसे बिखरे, खनकते दिल की तालों पे सुलाया है...

ये यादों से बुना कंबल उधेड़ो, क्या भला होगा...
ये टूटे साज़ के फिर तार छेडो क्या भला होगा...
इन आँखों के समंदर से उछल जो दूर बिखरे थे...
वो मोती, शुष्क आँखों मे समेटो क्या भला होगा...

वो मीठी प्यार की बातें, ये दिल अब कह ना पाएगा...
चुभन दुर्भाग्य के काँटों की मन ये सह ना पाएगा....
अगर मन की किताबों के, दो पन्ने भीग भी जाए...
तुम्हारे प्रेम दरिया मे ये मन फिर बह ना पाएगा...

मेरे मन की बुझी लौ को जलाने, फिर ना आना तुम...
हृदय के खंडहर को अब सजाने, फिर ना आना तुम...
मेरे इस मन के चूल्हे मे है बस कुछ राख ही बाकी...
ये रोटी प्यार की अपनी, पकाने फिर ना आना तुम...

मैं कुल्हड़ मे रिवाजों के, तुम्हारा प्यार पी आया...
समझदारी के धागों से, मैं दिल के घाव सी आया...
मैं जीवित ही नही हूँ और, अब तुमसे मैं क्या बोलूं....
जो पल जीने की इच्छा थी, तुम्हारे साथ जी आया....

7 टिप्पणियाँ:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut bahut bahut , achcha laga ye geet, blog jagat men swagat aur shubhkaamnayen.

Unknown ने कहा…

lajwab

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Bahut khoobasurat abhivyakti....hindi blog jagat men apka svagat karate huye khushee ho rahee hai. shubhakamnayen.

दिलीप ने कहा…

bohot bohot shukriya.... Yogesh. Ameen aur Poonam ji....

kshama ने कहा…

मैं कुल्हड़ मे रिवाजों के, तुम्हारा प्यार पी आया...
समझदारी के धागों से, मैं दिल के घाव सी आया...
मैं जीवित ही नही हूँ और, अब तुमसे मैं क्या बोलूं....
जो पल जीने की इच्छा थी, तुम्हारे साथ जी आया....
Pooree rachana dohrayi ja sakti hai!

shama ने कहा…

मेरे हालात तुझसे दूर कैसे हैं, मैं क्या बोलूं...
मैं खुद्दारी को आँसू से भला तोलूं तो क्यूँ तोलूं....
बहुत मुश्किल से दिल मे पीर का दरिया सम्हाले हूँ...
समझदारी के उँचे बाँध ये खोलूं तो क्यूँ खोलूं...
Bahuthee sundar rachana!

makrand ने कहा…

मैं जीवित ही नही हूँ और, अब तुमसे मैं क्या बोलूं....
जो पल जीने की इच्छा थी, तुम्हारे साथ जी आया....
good composition

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