नन्हा सा भिखारी

Author: दिलीप /

रात पूनम की है, नन्हा नहीं समझता ये...
रात, बेबस निगाह लेके है वो घूर रहा...
वो सोचता है वो सिक्का कभी गिरेगा कहीं...
अपने आका की पिटाई से वो बच जाएगा...

वो मासूम सा नन्हा सा भिखारी देखो...
हाथ फैलाए, दौड़ता है सड़क पर तन्हा...

6 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक पहलू चाँद, एक पहलू रोटियाँ

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

वाह! जे बात | क्या लिखा आपने बहुत सुन्दर | पढ़कर प्रसन्नता हुई | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया,उम्दा प्रस्तुति !!!

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Rahul ने कहा…

आपने बहुत सुन्दर...

kunwarji's ने कहा…

dil ko kuredti si panktiya...

kunwar ji,

Pallavi saxena ने कहा…

उफ़्फ़ यह बेबसी और यह हालात न जाने कभी खत्म होंगे भी या नहीं...

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