कहेंगे की शेरो को चाहे भुला दो, कृषक कुछ बचे हैं, उन्हे ही बचा लो....

Author: दिलीप /


आँखें थी सूखी पर सपने हरे थे...
चुन चुन के पलकों के बोरे भरे थे...
  हाथों से मिट्टी को दाने खिलाए...
प्यासी धरा को पसीने पिलाए...

यूँ बैलों ने चीरा कलेजा धरा का...
दबा हो कहीं कोई टुकड़ा दया का...
धरा को बना ईश मन से था पूजा...
न जाने धरा को मगर क्या था सूझा....

न धरती ने कोई भी एहसान माना...
न पत्थर हृदय से उगा एक दाना...
नहरों का धन भी ख़तम हो चला था...
स्वयं उसकी किस्मत ने उसको छला था...

वो करता रहा आसमाँ से दुहाई...
तुम्ही कुछ मदद मेरी कर दो न भाई...
पर उँचे चढ़ो को क्या कुचलों से मतलब...
दिखाता रहा वो निराशा के करतब...

ग़रीबी की बेटी उधारी भी जन्मी...
वो पथराई आँखें उसे देख सहमी..
जीने मे मुश्किल खड़ी हो गयी थी...
वो अनचाही बेटी बड़ी हो गयी थी...

न सर पे बची छत न घर मे था आँगन...
आगों मे पेटों की जलता रहा मन...
बचपन सिसकता था बस चीथड़ो मे...
जवानी सनी क़र्ज़ के कीचड़ो मे..

जो उम्मीद का स्वप्न मन मे पला था...
उसे बस वही आज मन मे ख़ला था...
अब उम्मीद सारी ख़तम हो चली थी...
मन मे निराशा थी और बेकली थी...

उसने भी तब एक नुस्ख़ा निकाला...
लगा ही लिया अपनी साँसों को ताला...
वो लटका हुआ पेड़ की डाल से था...
गुस्सा उसे भाग्य की चाल से था....

पर किस्मत ने उसकी हँसी ही उड़ाई...
  नभ ने थी जी भर के बूंदे गिराई...
वो ठंडा बदन और नम हो चला था...
निराशा की अग्नि मे मन पर जला था...

मगर क्या कृषक यूही मरते रहेंगे...
जीवन ख़तम खुद के करते रहेंगे...
ये हालात अच्छे नही इनको रोको...
समझ को ज़रा कर्म अग्नि मे झोंको...

नहीं तो यूँ सजती रहेंगी ये क़ब्रें...
बदल जाएँगी सारी कल की यूँ खबरें...
कहेंगे की शेरो को चाहे भुला दो...
कृषक कुछ बचे हैं, उन्हे ही बचा लो....

22 टिप्पणियाँ:

SANSKRITJAGAT ने कहा…

वाह सर जी

बिल्‍कुल मजा आ गया।


कहेंगे कि शेरों को चाहे भुला दो

कृशक कुछ बचे हैं उन्‍हें ही बचा लो।।


बहुत उदात्‍त सोंच

M VERMA ने कहा…

वाकई आप तो दिल की कलम से लिखते है
उम्दा

Archana Chaoji ने कहा…

मुझे खुशी है कि अब इस ब्लॉग को पढा जा रहा है .....बधाई.....
हान्थो ---को ठीक लिखने के लिए हा के बाद शिफ़्ट दबा कर M key दबाने से होगा ।

आपकी बात सोलह आने सच है .......

Amit ने कहा…

Gareebi ki beti udahri bhi janami..

wah.. good one

Tej ने कहा…

kya tsveer ukari hai aap ne maja aa jaya.....aap se umeed hai jald hi aap atankwaad par bhi apne dil ki ek aur kalam chalyege.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

fir sundar lekhan Dileep bhai.. lekin dono hi jaroori hain.. sher bhi aur kisaan bhi

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

अगर हम अपने आँसुओं को कमेंट बॉक्स में रख पाते तो शायद वही हमारा सार्थक कमेंट होता... जो सवाल हमने अपने पोस्ट से उठाया है उसकि इतनी अच्छी कड़ी देखने को मिलेगी..सोचा न था. अगर बैक टु बैक तीनों पोस्ट पर प्रतिक्रिया दें तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि एक साथ दिनकर, मंटॉ और निराला के दर्शन हो गए... जीते रर्हो..ईश्वर लेखनी की धार बनाए रखे!!!

Alpana Verma ने कहा…

मर्मस्पर्शी कविता दिलीप जी.
काश !इन किसानो का दर्द सभी समझ पाते..
आप का आह्वाहन अपनी जगह बिलकुल ठीक है.हमारा स्वर भी इस में शामिल जानिए.
बेहतरीन रचना.

Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…

कविता तो मात्र माध्यम हैं
कृषको की दुर्दशा को देखकर जो व्यथा होती हैं उसको एक कविता में कह देना आसान नहीं होगा.......कृषि की ये हालत हो चुकी हैं कि कृषक अपने बच्चो को कृषक नहीं बनाना चाहता.......धरतीपुत्र की हालत हैं बुरी.....देश भर से किसानो की आत्महत्या की ख़बरें आती रहती हैं.....आखिर क्यों, कृषक के लिए चलने वाली इतनी सारी योजनाओ के बावजूद वो नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं........उस दिन का इंतजार हैं जब कवि खेतो में लहलहाती फसल और उस फसल के बीच मुस्कुराते किसान को देखकर कविता लिखेगा.......आशा हैं वो दिन जरुर आयेगा......

prem ballabh pandey ने कहा…

ह्रदय को छू गई आपकी रचना.मगर भ्रष्टाचारियों को न इसे पढने की फुरसत है और न वो सुधरेंगेही.और लोगों का यही हाल न जाने कब तक होता रहेगा?

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

दिल की कलम से, कसम से बहुत अच्छा लिखते हैँ आप! बधाई हो!
www.omkagad.blogspot.com

Ra ने कहा…

बहुत अच्छा सन्देश है आपका ....एक सुन्दर कविता के रूप में ...एक शानदार प्रस्तुति

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है .... आप समाज के हर पहलु हर विसंगति पर लिख रहे हैं ... और बहुत अच्छा लिख रहे हैं ... बधाई ...

Renu goel ने कहा…

endangered species ....kisaan ...बचा लो ...

दिलीप ने कहा…

sabhi mitron ka bahut bahut abhaar

Satish Saxena ने कहा…

आज की पुकार होनी चाहिए आपका शीर्षक ! शुभकामनायें !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

मर्मस्पर्शी कविता दिलीप जी.

Asha Lata Saxena ने कहा…

कविता बहुत अच्छी लगी|पर ब्लॉग का रंग इतना गहरा है की पड़ने में बहुत कथनी हुई |
आशा

pooja sharma ने कहा…

आपका कोई मुकाबला नही हैं लेखन में
आप की हर रचना दिल से लिखी हुई होती हैं
आशा करती हूँ की आगे भी आप ऐसे ही अपने लेखन से ब्लॉग जगत को कृतार्थ करते रहेंगे

Amit Sharma ने कहा…

आज इस असली अन्नदाता को सब भुला बैठे है. जबकि अगर किसान ही ना बचेगा तो खेती कहा से होगी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बिलकुल दिल की कलम से आवाज आई है ये

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी दिल में गहरे बैठ गई आपकी ये प्रस्तुती

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

नम को छू गये आपके भाव।

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