दिल की कलम से...
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बड़ा बेदम निकलता है...
भूख बढ़ती ही रही और ज़िंदगी नाटी रही...
ख्वाब में चावल के कुछ दाने दिखे...
महफ़िलों में एक जलती नज़्म गा लेते हैं हम...
चंद्रशेखर आज़ाद को जलते हुए सुमन..
पेट और सीने की लौ, लय में पिरोकर देखिए...
हो सके तो दिल को ही अपने शिवाला कीजिए...
कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जो सौदेबाज़ नहीं होते...
सबकी सुरक्षा का बिल ला रहे हैं वो....
चुनावी भाषणों में अब, भुना रहे हैं यहाँ..
आओ मिलकर ज़रा इस पर भी गौर करते हैं...
अभी मेरे लिए हिंदोस्तान बाकी है...
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