कभी वो घर जलाते थे, अभी बहुएँ जलाते हैं...

Author: दिलीप /


कभी आकर नहीं मिलते, वो बस ख्वाबों मे आते हैं...
न वादा तोड़ते हैं वो, न वो वादा निभाते हैं...

के जिनकी गोलियों से लाल, हो जाती है ये धरती...
खुदा का नाम लेते हैं, वही अब हज को जाते हैं...

मोहब्बत उनकी शोलों से, पुरानी है बहुत यारों...
कभी वो घर जलाते थे, अभी बहुएँ जलाते हैं...

के अब हैवान भी उन बस्तियों से दूर रहते हैं...
वजह पूछो दबी आवाज़ मे इंसां बताते हैं...

भरी सर्दी मे है फूटपाथ पे, मज़लूम इक लेटा...
वहीं कुछ लोग कुत्तों को भी, बिस्तर पे सुलाते हैं...

कई सौ साल से जिनका, मुक़द्दर ही नही बदला...
वही उस भीड़ मे बदलाव के नारे लगाते हैं...

हो जो भूखा, वो क्या फिर इश्क़ की ग़ज़लें सुनाएगा...
कई शायर हुए जो चाँद को रोटी बताते हैं...

हमारी चाह है, डर के सही, मिलने वो आ जायें....
के हम उनके शहर मे आजकल ग़ज़लें सुनाते हैं...

20 टिप्पणियाँ:

vidya ने कहा…

वाह वाह...
सोचा किसी एक शेर को quote करूँ...मगर सब एक से बढ़ कर एक हैं..दूसरे के साथ कौन नाइंसाफी करे...
बहुत खूब दिलीप जी...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

vaah ...Dilip ji aik se aik Nayab she'r... umda gazal.

shikha varshney ने कहा…

मुखरित हुई संवेदनाएं.

kshama ने कहा…

मोहब्बत उनकी शोलों से, पुरानी है बहुत यारों...
कभी वो घर जलाते थे, अभी बहुएँ जलाते हैं...

के अब हैवान भी उन बस्तियों से दूर रहते हैं...
वजह पूछो दबी आवाज़ मे इंसां बताते हैं...
Kya gazab likha hai!

ASHOK BIRLA ने कहा…

sarthak kavya !! sabd nahi kuch kahne ko

Patali-The-Village ने कहा…

मोहब्बत उनकी शोलों से, पुरानी है बहुत यारों...
कभी वो घर जलाते थे, अभी बहुएँ जलाते हैं!
बहुत सुन्दर...

SKT ने कहा…

दिल की कलम से कागज पर उतरी ग़ज़ल...बेहद उम्दा!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

भरी सर्दी मे है फूटपाथ पे, मज़लूम इक लेटा...
वहीं कुछ लोग कुत्तों को भी, बिस्तर पे सुलाते हैं...

समाज को आईना दिखाती गज़ल.. जीते रहो!!!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

समाज के सच से अवगत कराती बेहतरीन रचना है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह वाह, अत्यन्त अर्थ भरे..

ZEAL ने कहा…

Awesome !!!

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर रचना ...
कृपया नयी-पुरानी हलचल पर आयें और अपने विचार दें ...आपकी रचना है यहाँ ...!!7-1-12

Aruna Kapoor ने कहा…

वास्तविकता को आपने कविता में ढाला है...सुन्दर रचना!

Aruna Kapoor ने कहा…

वास्तविकता को आपने कविता में ढाला है...सुन्दर रचना!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

के जिनकी गोलियों से लाल, हो जाती है ये धरती...
खुदा का नाम लेते हैं, वही अब हज को जाते हैं...

बहुत सशक्त/खूबसूरत गज़ल..
सादर बधाई...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत से मुद्दों को उठाती अच्छी गज़ल

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

के अब हैवान भी उन बस्तियों से दूर रहते हैं...
वजह पूछो दबी आवाज़ मे इंसां बताते हैं...


badhai dilip ji apki prastuti behad shandar .

Ranjana ने कहा…

हो जो भूखा, वो क्या फिर इश्क़ की ग़ज़लें सुनाएगा...
कई शायर हुए जो चाँद को रोटी बताते हैं...
:)...मै भी उन शायरों में से एक हूँ जो चाँद को रोटी बताते हैं...
जाने क्यों हर गम बड़ा
और हर ख़ुशी छोटी लगे
खुद का दिल जब साफ़ न हो
हर नियत खोटी लगे
हो ज़हन में जो भी
दिखता है वही हर एक जगह
भूख जब हो जोर की
तो चाँद भी रोटी दिखे...:)

Pallavi saxena ने कहा…

हर रचना पर सिवाय वाह वाह के और क्या कहें कभी शब्द ही नहीं मिलते... :)

बेनामी ने कहा…

जरूरत आन पड़ती है तभी मुझको बुलाते हैं,
बुरा मत मानिए जो इस तरह नाता निभाते हैं।
अचानक गुल हुई बिजली, अंध्रा छा गया घर में,
उपेक्षित मोमबत्ती को तभी घर में जलाते हैं।

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